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अमृत जीता, विष हारा गुणशील उद्यान के सुनसान मार्ग पर। यह वीर श्रावक था श्रष्ठी 'सुदर्शन' !
अर्जुन माली ने आज बहुत दिनों बाद एक मनुष्य को इस रास्ते आता देखा। वह हाथ में मुद्गर सँभाले लपक पड़ा सुदर्शन की और । सुदर्शन वीर योद्धा की तरह दृढ़ता के साथ वहीं खड़ा हो गया, न डर कर पीछे लोटा और न आगे दौड़ा। उसने शीघ्र ही संथारा के रूप में सागारिक-प्रतिमा धारण की, और प्रशान्त एवं अविचल ध्यान - मुद्रा में स्थित हो गया ।
सुदर्शन की तेजस्वी एवं निर्भय मुख - मुद्रा को देख कर अर्जुन के पैर ठिठक गए। प्रहार करने के लिए उसका मुद्गर ऊपर उठा अवश्य, पर वह वहीं अधर में उठा ही रह गया, नीचे नहीं आ सका । सुदर्शन की आत्मा • साहस और सुदढ़ संकल्पों के सामने अर्जुन के शरीर में रहे यक्ष का तेज समाप्त हो गया। अहिंसा के समक्ष हिंसा परास्त हो गई । क्षमा के सामने क्रोध हार गया । अमृत जीता, विष हार गया। यक्ष देवता घबड़ाया और सहसा अर्जुन के शरीर से निकल कर
१. किसी आकस्मिक संकट के समय जो 'संथारा' भागार रखकर
किया जाता हैं, जैसे कि यदि इस संकट से बच गया, तो मुझे आहार आदि लेने की छूट है, अन्यथा यावज्जीन के लिए आहार • पानी का त्याग है।
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