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अमृत जीता ,विष हारा
भगवान महावीर के युग की बात है । मगध जनपद को राजधानी राजगृह उस युग की सुन्दर, समृद्ध और प्रसिद्ध नगरी थी । उस राजगृह में अर्जुन नाम का एक माली रहता था। नगर के बाहर उसका एक सुन्दर तथा विशाल पुष्पाराम ( बगीचा ) था। उसमें चम्पा, चमेली, गुलाब, मोगरा आदि तरह- तरह के सुगन्धित फूल बारहों महीने खिले रहते थे । फूलों की भीनी - भीनी गन्ध से आसपास का वातावरण महकता रहता था। अर्जुन माली इसी पुष्पाराम से अपनी आजीविका चलाता था । पुष्पाराम के निकट ही एक यक्ष का आयतन (मंदिर)था । यक्ष अपने हाथ में सदा लोहे का एक बड़ा भारी मुद्गर धारण किये रहता था। इसलिए जनसाधारण में उसका नाम 'मुद्गरपाणि' प्रसिद्ध हो गया । अर्जुन माली बचपन से ही इस यक्ष को अपने कुल-देवता के रूप में मानता - पूजता आ रहा था । अतः नित्यप्रति सुन्दरसुवासित फूलों से उसकी पूजा अर्चना करता रहता था।
राजगृह में जहाँ अभयकुमार, सुदर्शन और पूणिया श्रावक जैसे सदाचारी पुरुष रहते थे, वहाँ कुछ बदमाश और दुष्ट व्यक्तियों के दल भी स्वच्छन्द विचरण करते थे। उन्हीं
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