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विषय-प्रवेश : ७
यापनीय बन गयो ।' यह सत्य है कि यापनीय परम्परा का विकास मथुरा में उसी काल मे हआ है, जब शक, हण आदि के रूप में यवन भान्त में प्रविष्ट हो चुके थे और मथुरा उनका केन्द्र बन गया था। फिर भी व्याकरण-शास्त्र की दृष्टि से यानिक शब्द का यापनीय रूप बनानायह सन्तोषजनक व्याख्या नहीं है । __ संस्कृत और हिन्दी शब्द कोशों में यापन' शब्द का एक अर्थ परित्याग करना या निष्कासित करना भी बताया गया है। प्रो० आप्ट ने 'याप्य' शब्द का अर्थ निकाले जाने योग्य, तिरस्करणोय या नीच भी बताया है. इस आधार पर यापनीय शब्द का अर्थ नीच, तिरस्कृत या निष्कासित भी होता है। अतः सम्भावना यह भी हो सकती है कि इस वर्ग को तिरस्कृत, निष्कासित या परित्यक्त मानकर 'यापनीय' कहा गया हो।
वस्तुतः प्राचीन जैन आगमों एवं पाली त्रिपिटक में यापतीय शब्द जीवनयात्रा के अर्थ में ही प्रयुक्त होता था। 'आपका यापनीय कैसा है' इसका अर्थ होता था कि आपकी जीवन-यात्रा किस प्रकार चल रही है। इस आधार पर मेरा यह मानना है कि जिनकी जीवन-यात्रा सुविधापूर्वक चलती हो वे यापनीय हैं। सम्भवतः जिस प्रकार उत्तर भारत में श्वेताम्बरों ने इस परम्परा को अपने साम्प्रदायिक दुरभिनिवेश में 'बोटिक' अर्थात् भ्रष्ट या पतित कहा; उसी प्रकार दक्षिण में दिगम्बर परम्परा ने भी उन्हें उनके सुविधावादी जीवन के आधार पर अथवा उन्हें तिरस्कृत मानकर यापनीय कहा हो। ___इस प्रकार हमने यहाँ यापनीय शब्द की सम्भावित विभिन्न व्याख्याओं को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। किन्तु आज स्पष्ट प्रमाणों के अभाव में यह बता पाना तो कठिन है कि इन विविध विकल्पों में किस आधार पर इस वर्ग को यापनीय कहा गया था। फिर भी कल्याणविजयजी की मान्यता अधिक युक्तिसंगत है।
१. प्रो० एम० ए० ढाकी से व्यक्तिगत चर्चा के आधार पर । २. अ- कालिका प्रसाद : बृहत् हिन्दी कोश (ज्ञानमंडल, वाराणसी) वि० सं०
२००९, पृ० १०६८ । (ब)-वामन शिवराम आप्टे : संस्कृत-हिन्दी कोश (दिल्ली-१९८४)पृ०८३४ ३. वामन शिवराम आप्टे-वही पृ० ८३४ ।
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