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पुत्र अभी बालक ही था इतने में पर्युषण पर्व आया। उस वक्त उसके कुटुंब में अट्ठम तप की बात चल रही थी। वह सुनकर जातिस्मरण होने से स्तनपान त्याग कर उस बालकने भी अट्ठम तप किया। स्तनपान न करता देख और अट्ठम तप करने के कारण मालती के बासी पुष्प समान कुमलाया देखकर माता पिताने अनेक उपाय किये, परन्तु सचेत न होकर वह बालक मुर्छित होगया। उसे मरा समझ कर उसके पिता भी उसके दुःख से मृत्यु को प्राप्त होगये । उस वक्त विजयसेन राजाने उस पुत्र और उसके बाप को मरा जानकर उसका धन ग्रहण करने के लिए सुभटों को भेजा। इधर उस बालक के अट्ठम तप के प्रभाव से धरणेंद्र का आसन कंपित हुआ। अवधिज्ञान से सर्व वृत्तान्त जानकर तत्काल ही भूमि पर पड़े हुए उस बालक को अमृत के सिंचन से सावधान कर ब्राह्मण का रूप धारण कर उसका धन ग्रहण करते हुए उसने राजा के सुभटों को रोका । यह सुनकर राजा भी बहाँ आकर कहने लगा कि हे ब्राह्मण ! जिसका वारस न रहे उस धन को हम ग्रहण करते हैं यह हमारा परंपरागत नियम है, अतः तुम क्यों रोकते हो ? धरणेद्र बोला-राजन् ! इस धन का वारस जिन्दा है। यह सुन राजादि कहने लगे कि कैसे जीवित है ? बतलाइये कहां हैं? फिर धरणेंद्रने भूमि से साक्षात् निधि के समान बालक को जीवित दिखलाया। इससे सबके सब आश्चर्य में पड़कर पूछने लगे महाराज! आप कौन हैं ? और यह क्या घटना बनी ? धरणेंद्र बोला-मैं धरणेंद्र नामक नागराज हूँ। इस बालकने अट्ठम तप किया था इसी कारण मैं इसको सहाय करने आया हूँ। लोग बोले-हे स्वामिन् ! पैदा होते ही
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