Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 3
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand
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११
विद्वान उपरथी कृति माहिती कुमारपालप्रबन्ध सं. (भांका९९) कुमारसम्भव-(सं.)अवचूरी\ सं. (पाकाहेम१४८७८) कुरुचन्द्रनृपादिदृष्टान्त वसतिशयनादि दानविषये (गद्य) सं. (पाकाहेम२१०६) कुलक प्रा. गा.५\ इयमच्छेरयभूयं प (पाताहेसं१४२) कुवलयानन्दकारिका-(सं.)टिप्पण। सं. (पाकाहेम१३१६०) कुसुमसारकथा तपविषये। सं. (पाकाहेम१७७६, पाकाहेम८०७७) कुसुमाञ्जली\ मागु. (पाकाहेम१२१२४) कृपणश्रेष्ठि कथा दानविषये प्रा. गा.८९ (पातासंघवी१५७-१) कृष्णराजीवविचार प्रा. गा.१४\ जम्बुद्दीवाउ अस (पाताहेसं१६१) केटलाक दर्दोनां औषध। मागु. (पाकाहेम१२३८८) केवलज्ञानविंशिका सं. श्लोक२०\ केवलज्ञानमनन्तं (पुप्रे४१८) केशीगोयमसन्धि। अप.\ ग्रं.८५\ गा.७० (पाकाहेम९०२९, पाकाहेम९०३२) कोकिलाष्टक\ सं. श्लोक८ (पाकाहेम८६८८) कौटिल्यअर्थशास्त्र-(सं.)टीका सं. (पातासंघवीजीर्ण७२) क्रियाकुलक\ अप.\ गा.३३\ दुलहु लहेविणु म (पाकाहेम९०२) क्रियाभासेन चन्द्रप्रभजिनस्तवन*\ सं.\ श्लोक३६ (पाकाहेम८२३२) क्रियाभासेन चन्द्रप्रभजिनस्तवन-(सं.)अवचूरि सं. (पाकाहेम८२३२) क्रियारत्नसमुच्चय-(सं.)बीजक सं. (पातासंघवी१०६-१) क्षणिकवाद निरास प्रकरण सं. (पातासंघवी१३५-२) क्षमापनाश्लोक सं.\ श्लोक३\ हे सभ्याः श्रृण (पाताहेसं५७) क्षामणककुलक प्रा. गा.४०\ जो कोइ मए जीवो (पातासंघवी११७-१, पातासंघवी१४५-१, पाताहेसं१६८,
पाताहेसं१८९, पाकाहेम७७९१) क्षामणकसूत्र-(सं.)अवचूरि। सं. (पाकाहेम२३२८) क्षामणकसूत्र प्रा. (पातासंघवीजीर्ण९०, पातासंघवी१८२-१, खंता७०, खंता७३, खंता११०, खंता७६-१, पाकाहेम९०२,
पाकाहेम१००७१, पाकाहेम१०४३३, पाकाहेम१२१२४) क्षुल्लकभवावलिकाप्रकरण-(सं.)अवचूरि\ सं. (पाकाभाभा६८) क्षेत्रपालस्तुति प्रा. गा.१\ जो रक्खइ जिणभुव (तालाद३३९) क्षेत्रसमासप्रकरण-(सं.)अवचूरि। सं. (पाकाहेम६९६९, भांका२१५) क्षेत्रसमासप्रकरण-(सं.)टीका। सं. (डतामुक्ता४६४) क्षेत्रसमासप्रकरण प्रा. गा.१०३ (पातासंघवीजीर्ण८०) खण्डनखण्डखाद्य-(सं.)शिष्यहितैषिणीवृत्ति। सं. (जेताजि३८४, पाताहेसं१४३) खरतर-उत्पत्तिविचार सं. (पाकाहेम८३८७) खरतरगच्छगुर्वावली\ सं. (पाकाहेम१४००५) खुड्डककुमार कथानक भावनायां प्रा. श्लोक १३५\ नवगुत्तीहिं विस (पातासंघवी९९) गउडवहोमहाकाव्य-(सं.)टिप्पण\ सं. (पाताहेसं१३३, पाताहेसं१३४) गच्छस्वरूप प्रा. जहिं णत्थि सारण (भांता७०) गच्छाचारप्रकीर्णक प्रा. गा.१३७ नमिऊण महवीरं ति (जेताजि१४६, पातासंघवीजीर्ण६५, जेकाजि१९५१,
पाकाहेम६६६, पाकाहेम९०२, पाकाहेम१००८९, भांका११६, भांका११६, भांका१२३, भांका१५०, भांका२२७) गच्छाचारप्रकीर्णक-(सं.)अवचूरि। सं. नमिऊ. आदौ शास्त (भांका१५०) गजाष्टक\ सं. श्लोक९ (पाकाहेम१३७५, पाकाहेम८६८८) गजाष्टकादिसप्तदशाष्टक\ सं. (पाकाहेम१७०८२) गणकारिका-(सं.)रत्नटीका सं. (पातासंघवी१३५-२) गणधरवाद। सं.\ इह केचित्सदनुष् (भांका२९२) गणधरसत्तरी प्रा. गा.७१ (पातासंघवी६७-१) गणधरहोरा प्रा. गा.२९\ जीवाजीवयपयत्थवत (पातासंघवी१८०-२)

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