Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 3
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand

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Page 98
________________ ८१ विद्वान उपरथी कृति माहिती न्यायप्रवेशसूत्र-(सं.)टीकानी पञ्जिकावृत्ति। सं. दुर्वारमारकरिकु (जेताजि३६४, पाताखेत३८-२, खंता२७०) पार्श्वनाग (दिगम्बर)-आचार्य आत्मानुशासन सं.\ श्लोक७७\ सकलत्रिभुवनतिलक (जेताजि१५८, पाताखेत२३, पातासंघवी१६४, पातासंघवी१७४, पातासंघवी६४-२, पातासंघवी७१-३, पातासंघवी७२-२, पातासंघवी७२-३, पातासंघवी१०४-२, पातासंघवी१३४-२, पातासंघवी१४५-१, पातासंघवी१६७-१, पातासंघवी१८१-१, पातासंघवी२०६-२, पाताहेसं१६१, खंता८८, खंता९५, खंता११४, खंता११८, खंता१२९, खंता१३४, तालाद३२६, पाकाहेम७७५, पाकाहेम११०८५) पार्श्वसाधु-मुनि पगामसज्झाय-(सं.)वृत्ति। सं. अथ प्रतिक्रमणमि (पातासंघवी१६०-२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-(सं.)वृत्ति। सं. श्लोक५७७१ देवेन्द्रवन्ध (पातासंघवी१६०-२, पातासंघवी१८९-१, पाकाहेम७०६) पासचन्द्र - जुओ - पार्श्वचन्द्र-पं. पिङ्गलाचार्य-आचार्य प्राकृत पैङ्गलनो हिस्सो छन्दोरूपक#\ अप. (पाकाहेम१२०१४) पुण्यकीर्ति-गणि-कृष्णर्षिगच्छ\ गुरु-आचार्य कमलचन्द्रसूरि शीलोपदेशमाला-(सं.)पञ्जिका टीका। सं. सर्वसिद्धिप्रदा (भांका१६९) पुण्यनन्दी-उपाध्याय रूपकमाला मागु. (पाकाहेम९४२६, पाकाहेम९४२७, पाकाहेम९४२८) पुण्यरत्न-मुनि-विधिपक्ष द्विवर्णरत्नमालिकास्तुति सं. श्लोक२६ (पाकाहेम५२१२) पुण्यरत्नसूरि-आचार्य पार्श्वनाथ यमकमय स्तोत्र सं.\ श्लोक१५ (पाकाहेम११२८१) पार्श्वनाथ यमकमय स्तोत्र-(सं.)स्वोपज्ञ टीका सं.\ श्लोक१५ (पाकाहेम११२८१) पुरुषोत्तमदेव-जैनेतर ज्ञापकसमुच्चय। सं. (पाकाहेम७३१५) पुलिन्द्र भट्ट-कवि कादम्बरी-(सं.)कादम्बरीशेष। सं. (पाताखेत३३) पुष्पदन्त-अज्ञात हरिवंशपुराण\ अप. ग्रं.११५००\ पणवेवि गुरूपयइ (भांका३१०) पूज्यपाद-आचार्य-दिगम्बर समाधिशतकसं. (पाकाहेम१३३९) समाधिशतक-(सं)टीका सं. (पाकाहेम१३३९) पूर्णचन्द्रसूरि-आचार्य आमेरु महामन्त्री प्रा. गा.१३\ इय एए उवएसो सम् (भांता७०) उपसर्गहरस्तोत्र-(सं.)टीका। सं. नमस्कृत्य परं प (भांका२४३) पृथुयशा-जैनेतर षट्पञ्चाशिका सं. (पाताहेसं१३८, पाकाहेम१०१०३, पाकाहेम१०२२२, पाकाहेम१०४३६) प्रतिष्ठासोम-मुनि सोमसौभाग्यकाव्य श्लोकबद्ध सं. (पाकाहेम२०८८, पाकाहेम८००६) प्रद्युम्न श्रेष्ठी-जैनश्रावक कालिकाचार्यकथा। सं. श्लोक७४\ पर्वेदं भाद्रपत्र (पातासंघवी१९४-२) प्रद्युम्नसूरि-आचार्य प्रव्रज्याविधानकुलक-(सं.)वृत्ति। सं. (पातासंघवी७९-१) मूलशुद्धिप्रकरण\ प्रा. गा.२१४\ वन्दामि सबन्न (पाताखेत३, पाताखेत१२, पाताखेत३६, पाताखेत१७-२, पातासंघवीजीर्ण५९, पातासंघवीजीर्ण८१, पातासंघवीजीर्ण८२, पातासंघवी१०८, पातासंघवी१५१, पातासंघवी१६४, पातासंघवी६४-२, पातासंघवी६६-३, पातासंघवी१३४-२, पातासंघवी१४१-२, पातासंघवी१५६-१, पातासंघवी१६१-२, पातासंघवी१८१-१, पातासंघवी१८४-१, पातासंघवी१९०-२, पातासंघवी१९५-२, पातासंघवी२०६-२, पाताहेसं११३,

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