Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 3
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand

View full book text
Previous | Next

Page 104
________________ विद्वान उपरथी कृति माहिती ८७ भांता५९, जेकाजि४९, पाकाहेम७०२, पाकाहेम३५४५, भांका२५९) पञ्चसङ्ग्रह-(सं.)टीका\ सं. ग्रं.४६३१ (जेताजि१७४, पातासंघवी१४०, पाताहेसं९२, खंता१४५) पिण्डनियुक्ति-(सं.)बृहद्वृत्ति। सं. ग्रं.७२५० (जेताजि९०, जेताजि९१, पातासंघवी१६-१, पाताहेसं३०, जेकाजि४७, पाकाहेम६५६०, पाकाहेम१००७७, पाकाहेम१४८६०) प्रज्ञापनासूत्र-(सं.)बृहद्वृत्ति। सं.\ ग्रं.१६०००। जयति नमदमरमकुटप (जेताजि२८, जेताजि३०, पातासंघवीजीर्ण२३, खंता१८, जेकाजि२६, पाकाहेम१००१६, पुप्रे४०५) बृहत् कल्पसूत्र-(सं.)वृत्ति सं.प्रा. प्रकटीकृतनिःश्र (जेताजि५२, जेताजि५३, जेताजि५४, जेताजि५५, जेताजि५६, जेताजि५७, जेताजि५८, जेताजि५८, पाताहेसं१०, पाताहेसं११, भांता४१, जेकाजि३२, जेकाजि३३, जेकाजि३४, पाकाहेम१००४१, पाकाहेम१००४२, पाकाहेम१००४३, पाकाहेम१००४४, पाकाहेम१०३१५, पाकाहेम१०३१६, पाकाहेम१०३१७, पाकाहेम१०३१८, पाकाभाभा७०, पाकाभाभा७१, पाकाभाभा७२) बृहत् क्षेत्रसमासप्रकरण-(सं.)टीका\ सं. ग्रं.७६६०\ जयति जिनवचनमवित (जेताजि१९२, जेताजि१९३, जेताजि१९४, पाताहेसं७३, खंता२८६, खंता२८९, भांता५१) बृहत् सङ्ग्रहणीप्रकरण-(सं.)टीका\ सं. ग्रं.५००० (जेताजि१९८, जेताजि१९९, पातासंघवी९६, पातासंघवी१०३, पातासंघवी१०९, खंता१५०, पाकाहेम१०३५६) मलयगिरिशब्दानुशासन सं. (पातासंघवीजीर्ण५८-१, पाकाहेम७०६१) मलयगिरिशब्दानुशासन-(सं.)वृत्ति। सं.\ श्लोक४३०० (पाकाहेम७०६१) राजप्रश्नीयोपाङ्गसूत्र-(सं.)वृत्ति। सं. ग्रं.३७००\ प्रणमत वीरजिनेश (जेताजि२४, पातासंघवीजीर्ण१३, खंता१६, भांता७३, अताका५०५, अताका५०६, जेकाजि२२, जेकाजि१२७६, पाकाहेम२३१, पाकाहेम६९१७, पाकाहेम१००१३) व्यवहारसूत्र-(सं.)वृत्ति। सं. ग्रं.१३७१९\ प्रणमत नेमिजिने (जेताजि६२, जेताजि६३, जेताजि६४, पाताहेसं१२, खंता२९, खंता३०, खंता३१, भांता१, भांतार, भांता३, भांता४, भांता५, भांता६, भांता७, वताहंस४४४, वताहंस४४६, वताकांति३९६, पाकाहेम६८६, पाकाहेम६८७, पाकाहेम६८८१, पाकाहेम१००४९, पाकाहेम१००५०) सप्ततिका षष्ठ प्राचीन कर्मग्रन्थ-(सं.)टीका सं. ग्रं.३७८०\ अशेषकर्मांशतमः (पातासंघवी१, पातासंघवी६१-१, पातासंघवी१५३-१, खंता१४८, भांता४३, भांता४४) सप्ततिकाप्रकरण-(प्रा.)चूर्णी\ प्रा. ग्रं.२००० (पाताहेसं९६) सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र-(सं.)वृत्ति। सं. ग्रं.९१२५\ यथास्थितं जगत्स (जेताजि३५, जेताजि३६, पातासंघवी२६, खंता२१, भांता५५, जेकाजि६५, पाकाहेम६५३८, पाकाहेम६५७७, पाकाहेम१००२३, पाकाहेम१०४७४, पाकाभाभा१८) मलयहंस-मुनि आरामशोभाकथा श्लोकबद्ध सं. श्लोक३५१ (पाकाहेम२१०८) मल्लवादी क्षमाश्रमण-आचार्य न्यायबिन्दुनी-(सं.)टीका--(सं.)धर्मोत्तरटिप्पनक\ सं. ग्रं.१३००। प्रणिपत्य जिना (जेताजि३७०, जेताजि३७१, पाताहेसं१४४, तालाद३४७) मल्लिषेणाचार्य-आचार्य अन्ययोगव्यवच्छेदवीरद्वात्रिंशिका-(सं.)स्याद्वादमञ्जरी टीका। सं. श्लोक२८०० (पातासंघवी१११, पाकाहेम१०७०७, पाकाहेम१०७०८) सज्जनचित्तवल्लभ सं. (पाकाहेम१७९५८) महीप-जैनेतर अनेकार्थतिलक सं. ग्रं.९५० (पाकाहेम१०२१३) महीमेरु-अज्ञात जिनस्तुतिगर्भित क्रियागुप्त पञ्चविंशतिका सं. श्लोक५३ (पाकाहेम११२८०) महीसागर-उपाध्याय नेमिनाथस्तवन। सं. श्लोक१३\ श्रीशैवेयममेयश (पाकाहेम१२३२०) नेमिनाथस्तवन-(सं.)स्वोपज्ञ अवचूरि। सं. (पाकाहेम१२३२०) महेन्द्रसिंहसूरि-आचार्य गुरु-आचार्य धर्मघोषसूरि अनेकार्थसङ्ग्रह-(सं.)अनेकार्थकैरवाकरकौमुदी टीका\ सं. ग्रं.१००००\ परमात्मानमानम्य (जेताजि३०९, जेताजि३१०, जेताजि३११, जेताजि३१२, पाताखेत२२, पाकाहेम६६१८, पाकाहेम१०६८२)

Loading...

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165