Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 3
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand

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Page 68
________________ ५१ विद्वान उपरथी कृति माहिती जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र-(सं.)अवचूर्णि\ सं. नत्वार्हन्तं गु (पुप्रे४१२) तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक प्रा. ग्रं.१५६५ गा.१२३३\ जयइ ससिपायनिम्म (पातासंघवी१२४-२, पाकाहेम६६६, पाकाहेम६७३९, पाकाहेम१००९२, भांका२२१, भांका२२७) दशवैकालिकसूत्र-(प्रा.)चूर्णि\ प्रा.\ ग्रं.७९७०\ णमो अरहन्ताणं० (पाकाहेम१४९२७) दशवैकालिकसूत्र-(सं.)बृहद्वृत्त्यनुसारिणी (सं.)वृत्ति। सं. (पुप्रे४०८) धनदकथानक-चतुर्थव्रततृतीयातिचारविपाके\ प्रा.\ गा.१०४\ कक्खोरुहवयणाईरम (पातासंघवीजीर्ण९२) पढमस्सयकज्जगाथा। प्रा. गा.१५\ पढमस्सयकज्जस्सा (पातासंघवीजीर्ण९०) प्रतिष्ठाविधि। सं.प्रा. (पातासंघवीजीर्ण५८-३) योगविधानविंशिका\ सं.\ श्लोक२०\ मोक्षेण योजनाद् (पुप्रे४१८) वीरजिन सिद्धिगमन पश्चात् मोक्षगामी गणधरों का वर्षमान प्रा. वीरजिणे सिद्धिग (पाताहेसं१६६) श्रावकधर्म सम्यक्त्वरत्न प्रा. गा.३७\ पणित्तुपायकमलं (पाताखेत३६) श्रावकव्रतभङ्गभेदसङ्ख्या । सं.। श्लोक१४\ प्रणम्य समस्तपर (पुप्रे४१८) षडावश्यक प्रा. (पाताखेत६) सिद्धपञ्चाशिकाप्रकरण-(सं.)छाया। सं. सिद्धं सिद्धार् (पुप्रे४१८) अनन्तहंस-गणि दृष्टान्तरत्नाकर श्लोकबद्ध सं. (पाकाहेम१७७२) अनुभूतस्वरुप-यति प्रमाणरत्नमाला-(सं.)टीका। सं. (पाकाहेम६८०९) अनुभूतिस्वरुप-आचार्य (प्र. नाम-आचार्य-अनुभूतिस्वरूपाचार्य)-जैनेतर सारस्वतधातुपाठ। सं. (पाकाहेम१०२०७) सारस्वतव्याकरण सं. (पाताहेसं१७६, पाकाहेम१०२०४, पाकाहेम१०२०५, पाकाहेम१०३३३) अनुभूतिस्वरूपाचार्य - जुओ - अनुभूतिस्वरुप-आचार्य अन्नं भट्ट-जैनेतर तर्कसङ्ग्रह-(सं.)तर्कदीपिका टीका सं. (भांका२८६) अप्पय दीक्षित-जैनेतर कुवलयानन्दकारिका। सं. (पाकाहेम१३१६०) अभय गणि-गणि सुभद्राचरित्र अप. पणमेविणु जिणु स (पातासंघवीजीर्ण७६) अभयचन्द्र-अज्ञात लघीयस्त्रयप्रकरण-(सं.)टीका सं. (लिंता१४) अभयतिलक-गणि सिद्धहेमशब्दानुशासन-द्व्याश्रय संस्कृत महाकाव्य-(सं.)वृत्ति। सं. ग्रं.१७५७४\ श्रीभूर्भुवः स् (जेताजि३३५, जेताजि३३६, जेताजि३४०, पातासंघवीजीर्ण९०, पातासंघवी२८, पातासंघवी९५, पातासंघवी२९-१, पातासंघवी६४-१) अभयदेवसूरि-आचार्य (प्र. नाम-आचार्य-तर्कपञ्चानन) अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-(सं.)वृत्ति। सं.\ ग्रं.१०५\ अथानुत्तरौपपाति (जेताजि१९, जेताजि२१, जेताजि२२, पातासंघवीजीर्ण१२, पातासंघवी३३-१, पाताहेसं६, खंता१२, खंता१३, खंता१४, जेकाजि१८, पाकाहेम१५८, पाकाहेम६९०६, पाकाहेम१०००७, पाकाहेम१४९०६, पाकाभाभा८) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-(सं.)अभयदेवीय वृत्ति। सं. ग्रं.१३५६\ अथान्तकृद्दशासु (जेताजि१९, जेताजि२१, जेताजि२२, जेताजि२३, पातासंघवीजीर्ण१२, पातासंघवी३३-१, पाताहेसं६, खंता१२, खंता१३, खंता१४, जेकाजि१८, पाकाहेम१५८, पाकाहेम१०००७, पाकाहेम१४९०६, पाकाभाभा८) अष्टकप्रकरण-(सं.)टीका सं. ग्रं.३३७० (जेकाजि१५५१, जेकाजि२२०५, पाकाहेम६७४२) आदिजिनस्तवन। अप. (पाकाहेम१४९७१) उपासकदशाङ्गसूत्र-(सं.)वृत्ति। सं. ग्रं.९००\ श्रीवर्द्धमानमा (जेताजि१९, जेताजि२१, जेताजि२२, जेताजि२३, पातासंघवी३३-१, पाताहेसं६, खंता१२, खंता१३, खंता१४, जेकाजि१८, पाकाहेम६९०६, पाकाहेम१०००७, पाकाहेम१०५३८, पाकाहेम१४९०६, पाकाभाभा८, पुप्रे४५७, पुप्रे४५८)

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