Book Title: Hastlikhit Granthsuchi Part 3
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Stambhan Parshwanath Jain Trith Anand

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Page 69
________________ ५२ विद्वान उपरथी कृति माहिती औपपातिकोपाङ्गसूत्र-(सं.)टीका सं. ग्रं.४३००\ श्रीवर्द्धमानमा (जेताजि२४, पातासंघवीजीर्ण१३, खंता१५, भांता७३, वताकांति४०६-१, अताका४७२, अताका५०४, जेकाजि२०, पाकाहेम२१७, पाकाहेम२१९, पाकाहेम२२२, पाकाहेम६९१३, पाकाहेम६९१५, पाकाहेम१००११, पाकाहेम१०३४४, पाकाहेम१६७३७, पाकाहेम१६७३८) जयतिहुअणस्तोत्री अप. गा.३०\ जयतिहुवण कप्परु (जेताजि१५६, पातासंघवी२०६-२, जेकाजि१३२६, पाकाहेम१०२२, पाकाहेम१०१९२, पाकाहेम१०६५८, भांका२९३) । जयन्तविजयमहाकाव्य सं. श्लोक२२२० (पाकाहेम२६०६, पाकाहेम६६४१) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-(सं.)वृत्ति। सं. ग्रं.४३६६। नत्वा श्रीमन्मह (जेताजि१७, जेताजि१८, जेताजि१९, जेताजि३९६, जेतालौर, पातासंघवी६, पातासंघवी४२, पाताहेसं५, खंता११, खंता१२, खंता१३, भांता५२, लिंता३४१९, अभ२, जेकाजि१६, पाकाहेम१२५, पाकाहेम६९०२, पाकाहेम१०००२, पाकाहेम१०४१३, पाकाभाभा२८, पाकाभाभा२९) नवतत्त्वप्रकरण-(प्रा.)भाष्य प्रा.\ गा.१५२\ इय पुव्वसूरिविर (जेताजि१५४, जेताजि१५५, जेताजि१७१, पाताखेत५०, पातासंघवी१४६-१, जेकाजि७४) पञ्चनिर्ग्रन्थसङ्ग्रहणीप्रकरणी प्रा. ग्रं.१३० (जेताजि१९१, पाकाहेम१०५९६) पञ्चाशकप्रकरण-(सं.)वृत्ति। सं. ग्रं.१४४२ (जेताजि२०८, जेताजि२०९, पातासंघवी२२) प्रज्ञापनातृतीयपदसङ्ग्रहणी\ प्रा. गा.१३३ (जेताजि१९१, पातासंघवी६२-२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-(सं.)वृत्ति। सं. ग्रं.४६३० (जेताजि१९, जेताजि२१, जेताजि२२, जेताजि२३, पातासंघवी३३-१, पाताहेसं६, खंता१३, खंता१४, जेकाजि१८, पाकाहेम१८४, पाकाहेम१०००७, पाकाहेम१०४१६, पाकाहेम१४८४४, पाकाहेम१४९०६) भगवतीसूत्र-(सं.)टीका। सं. ग्रं.१८६१६। सर्वज्ञमीश्वरमन (जेताजि१२, जेताजि१३, जेताजि१४, जेताजि१५, जेताजि१६, पातासंघवी१४, पाताहेसं४, खंता१०, भांता५०, जेकाजि१४, पाकाहेम१०५, पाकाहेम१००००, पाकाहेम१४७९३, पाकाहेम१४७९४, पाकाहेम१४७९५, पाकाहेम१४८४२, पाकाभाभार, पाकाभाभा२२) भगवतीसूत्रनी (सं.)टीकानो हिस्सो मूलाकोद्देशकसङ्ग्रहणी\ सं. पण्णवण वेयरागे (पाकाहेम१२७५५) विपाकसूत्र-(सं.)वृत्ति। सं.\ ग्रं.९००\ नत्वा श्रीव (जेताजि१९, जेताजि२१, जेताजि२२, पातासंघवीजीर्ण१२, पातासंघवी३३-१, खंता१३, खंता१४, जेकाजि१८, पाकाहेम१९९, पाकाहेम२००, पाकाहेम६९११, पाकाहेम१०००९, पाकाहेम१०४१७, पाकाहेम१४८९८, पाकाहेम१४९०६) श्रावकवक्तव्यताप्रकरण प्रा. गा.१०३ कयवयकम्मयभावो स (पातासंघवी१६०-१, खंता१२९, जेकाजि१३११, जेकाजि१३१७, जेकाजि१५३४, पाकाहेम७७५) श्रावकवक्तव्यताप्रकरण-(प्रा.)भाष्य प्रा. इय पुव्वसूरिविर (पाताहेसं११९) सन्मतितर्कप्रकरण-(सं.)तत्वबोधविधायिनीवृत्ति। सं. ग्रं.२५००० (जेताजि३६३, पातासंघवी१८, पातासंघवी५८-२, जेकाजि५८, जेकाजि५९, पाकाहेम६६६१, पाकाहेम६८५४, पाकाहेम१६८९४) सप्ततिका षष्ठ प्राचीन कर्मग्रन्थ-(प्रा.)भाष्य प्रा. गा.१९० नमिऊण महावीरं क (पाताहेसं११२) समवायाङ्गसूत्र-(सं.)वृत्ति। सं. ग्रं.३५७५ वर्द्धमानमानम्य (जेताजि८, जेताजिए, खंता३७, अभ७, जेकाजि१२, पाकाहेम६८९७, पाकाहेम९९९७, पाकाहेम१०४१२, पाकाहेम१०४६२, पाकाहेम१५४२९, पाकाभाभा७९, पाकाभाभा८०) साधर्मिककुलकी प्रा. गा.२६ (पाताखेत५१, पाकाहेम४७४०) स्थानाङ्गसूत्र-(सं.)वृत्ति। सं. ग्रं.१४२५०\ श्रीवीरं जिननाथ (जेताजि६, जेताजि७, पातासंघवीजीर्ण२६, पातासंघवी३८, खंता८, जेकाजि९, जेकाजि१०, पाकाहेम९९९५, पाकाहेम१०४६१, पाकाहेम१४७९६) अभयदेवसूरि-शिष्य-अज्ञात पुष्पवतीचरित्र प्रा. गा.६४३\ मुत्तममुत्तं सु (पातासंघवी२०५-१) अभयदेवाचार्य - जुओ - अभयदेवसूरि-आचार्य अभिनन्द-कवि रामचरितमहाकाव्य। सं. (पातासंघवी१२१-१, पाकाहेम६६४०) अभिनवधर्मभूषण-आचार्य न्यायदीपिका सं. (पाकाहेम२८६९) अमरचन्द्रसूरि-आचार्य एकाक्षरीनाममाला। सं. श्लोक१९ विश्वाभिधानकोशा (अताका४७७) कविशिक्षा। सं. (पाकाहेम१०२१४, पाकाहेम१०३८५)

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