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15. यशोविजय कृत धर्मपरीक्षा
अपने शिष्य देवविजय के लिए यशोविजय ने लगभग वि. सं. 1720 में धर्मपरीक्षा की रचना संस्कृत में की। ये तपागच्छीय नयविजय के शिष्य थे।
16. देवसेन कृत धर्मपरीक्षा 17. हरिषेण कृत धर्मपरीक्षा
हरिषेण ने सं. 1044 (ई. 988) में अपभ्रंश में धर्मपरीक्षा की रचना की ग्यारह संधियों में । इसके विषय में हम आगे विस्तार से लिखेंगे।
इनके अतिरिक्त भी धर्मपरीक्षा नामक कृतियां भण्डारों में और भी सुरक्षित हंगी। देवेन्द्र कीति (17 वीं शताब्दी की धर्मपरीक्षा मराठी में उपलब्ध है। गुजराती में भी धर्मपरीक्षा ग्रन्थों की रचना हुई होगी। इससे ऐसा लगता है कि धर्मपरीक्षा काफी लोकप्रिय ग्रन्थ न्हा होगा। इन समूची धर्मपरीक्षाओं में। अमितगति की धर्मपरीक्षा का सर्वाधिक अध्ययन हुआ है।
Mironow N. ने 1903 में "Die Dharma Pariksha des Amitagati" ग्रन्य Leipzig से प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने भाषा, विषय, छन्द आदि का समीक्षात्मक अध्ययन किया है 1 Mironow के पूर्व डॉ. विन्टरनित्स ने भी सन् 1701 मेंA Hisiory of Indian Literature, Vol. No. 2 में इस ग्रन्थ के विषय पर अच्छा प्रकाश डाला है। धर्मपरीक्षा का हिन्दी अनुवाद भी 1901 में श्री पन्नालाल बाकलीवाल ने किया जिसे उन्होंने जैन हितेषी पुस्तकालय बम्बई से प्रकाशित कराया। इसी का मराठी अनुवाद पं. बाहुबलो शर्मा ने सन् 1931 में सांगली से प्रकाशित किया । डॉ. उपाध्ये ने भी ग्यारहवें प्राच्य विद्या सम्मेलन हैदराबाद में 'हरिषेण को धर्मपरीक्षा" निबन्ध में इस पर कुछ प्रकाश डाला था। २. धर्मपरीक्षा की पृष्ठभूमि
इतिहास का मध्यकाल ज्ञान प्रधान रहा है। वहां हर क्षेत्र तार्किकता से सन्नद्ध दिखाई देता है । आचरण और अध्यात्म का क्षेत्र भी तर्कणा शक्ति से उभर नहीं सका । इसलिए इस युग का साहित्य परीक्षा प्रधान साहित्य दिखाई देता है । उदाहरण तौर पर दिग्नाग की आलम्बनपरीक्षा, त्रिकालपरीक्षा, धर्मकीति की सम्बन्ध परीक्षा, धर्मोत्तर की प्रमाणपरीक्षा व लघुप्रमाणपरीक्षा, कल्याणरक्षित की श्रुतिपरीक्षा, और विद्यानन्द की प्रमाण परीक्षा, आप्तपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, सत्यशासनपरीक्षा जैसे परीक्षान्त ग्रन्थों का विशेष उल्लेख किया जा सकता है । इन ग्रन्थों में एक संप्रदाय का आचार्य दूसरे सम्प्रदाय के सिद्धान्तों की तार्किक ढंग से परीक्षा करता है। इस संदर्भ में परीक्षा के स्थान पर मीमांसा शब्द का भी प्रयोग हुआ है और मीमांसा श्लोवातिक, आत्ममीमांसा
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