Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा AAVAVASAWAVASAVAVAVAAVA तुमरी जु सरवरि को जु नाही बात सुनो सुखकार जू । तुम जोग लायक हम जुनाहीं यह सुनो निरधार जू ॥४०॥ इतनी जु सुनि करि सेठि बोलो बनिक सुन निह● सही। लक्षमी जु अति चंचल सु जानौ कहुँ सदां जु रही नहीं ॥ अाखरि जु हम तुम एक सबही बात सुनो मन लायक। ज्यों त्यों संवोधो बनिक तबहीं लई कबूल करायकैं ॥४१॥ दोहा । अपनी अपनी गरजकों, इस जगमें नर सोय । कहा कहा करतो नहीं, गरज वावरी होय ॥४२॥ लक्षिमी लोभ दिखायकें, बड़ो करो सनमान । लई कबूल करायकैं , तसु पुत्री गुनवान ॥ ४३ ॥ AVACANUAVAAAAAAAAAG - For Private And Personal Use Only

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