Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 26
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाके आगे जानो सोय। मेरी बात न बूझे कोय ॥४॥ याधी रैन वीति जब गई । निज त्रियसों तब कैसें कही ॥ लघु भ्राता मेरो अब जान । जाको आदर करे जहांन ॥ ५ ॥ जा आगे जानौ अव सोय । रंकहु मोहि गिने नहिं कोय ॥ सब परजा करै हुकुम प्रमान । कोई न मानै मेरी श्रान ॥ ६ ॥ ताजा विष दे मारि। करों निकंटक राज सम्हारि ॥ सब पर हुकुम हमारो होय । हमहींकों पूछे सब कोय ॥७॥ चालि छंद । तब बोली धुरंधर नारी । पिय बात सुनो सु हमारी ॥ ऐसे भ्रातकों बैन उचारो। धृग जीवन जन्म तुम्हारो ॥८॥ तुम्हे तात समान सु जाने । तुम आज्ञा शिरपर माने || For Private And Personal Use Only

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