Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 50
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रियबांन चतुर वह नारी । सो करी है रसोई त्यारी ॥ २१ ॥ किरिके तैयार भई है। भरताकौं टेर दई है ॥ तब पुन्य तनो फल सोई । देखो कैसो ततछिन होई ॥ २२॥ ढार ते गुरु मेरे उर बसो । दान बड़ो संसारमें दान करौ नर नारि।। दान जगतिमें सार है जासों होय भवपार ॥ टेक ॥२३॥ पहिताश्रव मुनिवर जहां ताही बनके माहिं । दुद्धर तपकरते जहां छीन शरीर बनाय ॥दान॥२४॥ पांच पांच उपवासजी कीने ते मुनि राय । कारन मुनि श्राहारके पहुंचे नगर सु जाय ॥दान०॥२५॥ सप्तदिवसलौ नगरमें अायो है अंतराय । नितप्रति मुनि फिरि जात हैं और सुनौ मनलाय॥दान॥२६॥ ViaNAVANAVARANAVANANDWANAPAN मा For Private And Personal Use Only

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