Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 96
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तहँके सुख भोगे जाय । कवि कहिबे समरथ नहिं ताय ॥ ताकी त्रियने बहु तप कियो । त सन्यास मरन तब लियो ॥ ५१॥ शुभावन तजि प्रान सुसार। इंद्रनी ताकी सुखकार ॥ ताकी भावज है सुखकार । कीनो तप दुद्धर अधिकार ||५२|| सही परीषह ताने सार । तहँ उपसर्ग भए जु अपार ॥ तसन्यास मरन करि जबै । शुद्धभाव तजि प्रान सु तबै ॥५३॥ स्त्री लिंग छेदि सुखकार । ताही स्वर्ग लयो अवतार ॥ ताकी महिमा बरने कोय । इंद्रके ढिग प्रतिइंद्र ज होय ॥ ५४ ॥ अब तौ द्रोन नगरके राय । दुद्धर तप कीनो सुखदाय ॥ अंत समाधिमरन करि सार । द्वादश स्वर्ग लयो अवतार ||५५|| तहँके सुख भुंजे अब सोय । श्रागें और सुनो सो होय ॥ राय जसोमतिने तप करो । त सन्यास मरन तब धरो ॥५६॥ For Private And Personal Use Only

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