Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 98
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुत बात को कहै बखान । वित माफक नित दीजै दान ॥ तातैं नर नारी खुन लीजै । दान बिनाभोजननहिं कीजै ॥ ६३॥ दानहितैं हरि हलपद पावै । दानहिंतें चकी गुन गावै ॥ दानहिंते अहमिंद्र कहावै । दानहिंतें शिव सुंदरि पावै ॥६४॥ बहुत बात को कहै बढ़ाय । दानहिंतें त्रिभुवनको राय ॥ तातैं नर नारी सुन लीजै । दान बिनाभोजननहिंकीजै ॥६५॥ चौपाई | पूरन दानकथा यह भूल चूक अक्षर जो मैं मतिहीन जु पढ़े सुनै जो अब मनलाय । जनम जनमकेपातिकजाय ॥ ६७ ॥ दुख दलिद सब जाय नशाय । जो यह कथा सुनै मनलाय ॥ भई । भारामल्ल प्रघट करि कही ॥ होय । पंडित शुद्ध करो तुम सोय ॥ ६६॥ अधिकार | छमियोंबुधिजनसवनरनारि ॥ For Private And Personal Use Only

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