Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 97
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दाम कथा VALAVANATANDAVARATARNALANAVAR सो तौ अष्टम स्वर्ग मझार । भयो देव पद ताकौं सार॥ बहुत बात को कहै बढ़ाय । बहुत कहें तो कथा बढ़ि जाय॥५७।। जिन जिनने जैसो तप करो। तिन तिननै तैसो पद धरो॥ इस विधिसों सबही नर नारि ।लयो स्वर्ग पद तिन अवतार॥८॥ देखौ दान तनो फल सोय । ताको इंद्रासन पद होय ॥ ताते नर नारी सुन लीजै । नितप्रतिदानचतुर्विधि दीजै ॥५६॥ | दान समान अवर नहिं कोई । जासों अजर अमर पद होई॥ ताः भव्य जीव सुनि लीजै । वितमाफिकनितदानसुदीजै॥६०॥ लखि सुपात्रको दीजै दान । दुखित भुखितके पोषै प्रान॥ | एकहु पुरुष जु संग जिमावै । दुखी देखिकै पोष करावै ॥१॥ जो इतनीहूं सकति न होय । एकहि रोटी दीजै कोय ॥ जो इतनी हूं सकति न होय । एकहि ग्रास देउ भवि लोय ॥६२॥ AURAVARANAADARAVADAV For Private And Personal Use Only

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