Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi
Catalog link: https://jainqq.org/explore/020301/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ॥ अनंतलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामिने नमः ।। ॥ योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ॥ ॥ कोबातीर्थमंडन श्री महावीरस्वामिने नमः ॥ आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर Websiet : www.kobatirth.org Email: Kendra@kobatirth.org www.kobatirth.org पुनितप्रेरणा व आशीर्वाद राष्ट्रसंत श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. श्री जैन मुद्रित ग्रंथ स्केनिंग प्रकल्प ग्रंथांक : १ महावीर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर - श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा, गांधीनगर-३८२००७ (गुजरात) (079) 23276252, 23276204 फेक्स: 23276249 जैन ।। गणधर भगवंत श्री सुधर्मास्वामिने नमः ।। ॥ चारित्रचूडामणि आचार्य श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरेभ्यो नमः ।। अमृतं आराधना तु केन्द्र कोबा विद्या Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only 卐 शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर शहर शाखा आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर त्रण बंगला, टोलकनगर परिवार डाइनिंग हॉल की गली में पालडी, अहमदाबाद - ३८०००७ (079) 26582355 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री महावीर जन AAAA २१ www. kobatirth.org ॐ नमः सिद्धेभ्यः →* दानकथा *< अर्थात् बज्रसेन चरित्र । प्रकाशक द्रमिन्द जैन मालिक श्रीजैन भारतीभवन काशी वीर सम्बत् २४५२ सन् १९२६ ईस्वी प्रथमवार १००० [ न्योछावर ७ आना विद्याविलास प्रेस, गोपालमन्दिर लेन, बनारस For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमद्र आ.श्री. केening शान मदिर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमः सिद्धयः। सँघई भारामल कृत अथदानकथाप्रारभ्यते। AAVAJAVIABADMAAVAVAJAVAJAV सवैया तेईसा । देव नमौ अहंत सदा अरु सिद्ध समूहनकौं चितलाई । सूर अचारजकौं प्रनमो प्रनमो जु उपाध्यायके नित पाई॥ साधनमों निग्रंथ मुनी गुरु परम दयाल महा सुखदाई । जे पंच गुरू जगमैं सुनमों जिनके सुमिरे भव ताप नशाई॥१॥ AVARANASAWAVAVAVARANAVAVVASAVAR For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा MVAAD M ४९४८eoaorce ३) दोहा-पंच परम गुरु सुमिरिक, सरस्वतिको शिरनाय । दान कथा बरनन करौं , सुनौ भविक चितलाय ॥२॥ चौपाई। श्री गौतमके सुमिरों पाय । दान कथा जु कहों मन लाय॥ दान बड़ो संसार मझार । दान करौ जु सबै नर नारि ॥३॥ | दान विना धृग जीवन होय । तातै दान करौ सब कोय ॥ धनकी सोभा जानौ दान । दान विना नर पसू समान ॥ दानहितें धन संपति होय । दुख दरिद्र नाशै सब कोय॥ माफिक सक्ति दान नित देय। इस भव यश पर भव सुख लेय॥५॥ दान कहो जु चारि परकार । भिन्न भिन्न सुनियै नरनारि ॥ प्रथमहिं दीजै दान अहार । जासों लक्षि भरे भंडार ॥६॥ For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir M दूजो औषधि दान सु देय । पर भव निरमल तनसो लेय॥ होय निरोग ताको जु शरीर । कामदेव सम गुन गंभीर ॥७॥ तीजो शास्त्रदान सुखकार । तासों उपजै बुद्धि अपार ॥ BI पंडित द्वै सबमें शिरमौर । ताकी सरवरि करन और ॥८॥ उत्तम कुलमें उपजे जाय । दुख दरिद्र सब जाय नशाय॥ | चौथो अभय दान सुखकार । सो जानो सबमें सिरदार ॥६॥ B मारत देखे जियकों कोय । ताके प्रान बचावै सोय ॥ कै तौ हुकम थकी अब जान । सो जु बचावै साके प्रान ॥१०॥ ना तरु द्रव्य जु दै करि सोय । ताके प्रान बचावै कोय ॥ द्रव्यहुकी जो सकति न होय । तन बलसों जुबचावै सोय ॥११॥ जो एक हु सकति नहिं होय । मनमें करुना कीजो सोय ॥ ameereemeneoneerworrenveera BABARABAVar For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान 1 मेरो जोर चलै अब नाहिं । मुझ आगें यह घात कराहिं ॥१२॥ | सकति सु माफक दंड सु लेय । प्रोषादिक उपवाश करेय ।। इस विधि दान चतुर परकार । भाँषो श्रीमुनि मुख सार॥१३॥ । तातै दान करौ सब कोय । दानहिं सार जगतमें होय ॥ दान दयो बज्रसेंनि कुमार । ताको कथन सुनो नर नारि॥१४॥ जंबू दीप दीपनमें सार । भरत क्षेत्र सोभै अधिकार ॥ मरहट देश तहाँ अब जान । धारापुर तहँ नगर बखान ॥१५॥ सो नगरी महिमा को कहै । अमर पुरी मानो बह लहै। ही सब सोभाजु बरनि करि कहौं । बट्टै कथा कछु अंत न लहौं ॥१६॥ | तिस नगरीको भूपति जान । यशो भद्र तसु नाम बखान ॥ परजा पालै अति सुखकार । दीन जननको पालन हार ॥१७॥ VARDANAMAVAVAVAAVAVVAVVAMAT For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न्याय नीतिसों नित पग धरै । भूलि अनीति न कबहूं करें ॥ ताही नगर इक सेठ सुजान । नाम महीधर कहो बखान ॥ १८ ॥ पूरव पुन्य उदय अब सोय । ताके घर लक्षिमी बहु होय ॥ छप्पन धुजा लहकें जहँसार । जाकें छपन कोटि दीनार ॥ १६ ॥ हेमवती जाके घर नारि । शील वंत गुनकी अधिकार ॥ नित प्रति पूजा दान सु करै । जिनवर नाम सदा उच्चरै ||२०|| ताकें युगल पुत्र सो भए । दुख सुख रूप तहाँ परिनए ॥ जेठो है सो मतिको हीन । लघुतौ जानौ चतुर प्रवीन ||२१|| दोहा । जेठो मति हेठो कुटिल, लघु सु सरल परिनाम ॥ उपजे एकहि कुखमें, पाप पुन्य परमान ॥ २२ ॥ For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान ३ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौपाई | जेठो है महर्सेनि कुमार । बज्रर्सेनि लघु जानौ सार || बसु सु वर्ष ने जब भए । मुनिके पास पढ़नकों गए ||२३|| जेठो सठ बुद्धी अब जान । मूरख है सो दुखकी खान ॥ बरसीं बीतीं अब सोय । अंकु एक आवै नहिं कोय ||२४|| लघुतौ जानौ चतुर प्रवीन | सो जानौ प्रति गुन करि लीन ॥ एकु जु अंक पढ़ावै मुनी । तातै कुमर पढ़ें चौगुनी ||२५|| सो ट महिना भीतर सार । बिद्या सर्व पढ़ी अधिकार ॥ फिर दोनों निज धरकों गए । तात पास सो पहुंचत भए ||२६|| दोनो सुतन बचन सुनि सोय । वह सठ बह जु चतुर अब होय ॥ जेठो देखि भयो जु उदास | लहुरो देखें परम हुलास ||२७|| For Private And Personal Use Only कथा ३ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दोहा । इस विधिसौं दोनो कुमर, रहत भये तहँ सोय ।। और कथन आगे अबै, जो कछु जैसो होय ॥२८॥ चौपाई। M देश देशमें जौहरी जान । बगै तहाँ बहु धनकी खान ॥ तिनके पुत्री सुंदर सार । जानो तहां गुनन अधिकार ॥२६॥ तिनकी सगाईं श्रा सार । लहुरे कुमरको अधिक सुसार। जेठे कुमरको जानो सोय । करै कबूल सगाई न कोय ॥३०॥ गीता छंद । इतनी जु सुनिकरि सेठि जवही मनमैं करत विचार जू। जेठेके आगे लघुकों परनो जीवनकों धरकर जू ॥ MAAVAVAVANVARVASAVAAVA PURNAVARANAWAVAVAVAVAAVVASANA For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा दान NAVAIVAVVVVVVNAVPRAVA जेठेके आगे लघुकों व्याहौं पिता धरम यह है नहीं। तातें जु पहिलै जेठो परनौ तब लघुकौं ब्याहौ सही ॥३१॥ चौपाई। एसो मनमें करत विचार । प्रागें और सुनौ बिस्तार ॥ जन्म दरिद्र बनिक इक जानि । सो परदेशी कहो वखानि ॥३२॥ | ताकें एक सुता अब सोय । षोड़स बर्ष तनी जो होय ॥ | पूरब पाप उदय अब जानि । दारिद्रीकें जनमी प्रानि ॥३३॥ | रूपवान जानौ अब सार । शीलवती गुनकी अधिकार ॥ सो आयो धारापुर माय । श्रागें और सुनौ मनलाय ॥३४॥ है। सेठि सुनी जह खबरि जुसार । मनमें कैसो करत विचार ॥ कछुक द्रव्य अब दै करि सोय । जेठे सुतकों परनो सोय ॥३५॥ ANANAVAVASANAVAJAVAVVAVAVI For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । - meeeeeeeeeeeeeeeeeeer | एक दिवश जुबनिक बुलवाय । तासों तब कैसें बतलाय ॥ आदर बहुत करो सनमान । बहु विधि दीनो बीरा पान ॥३६॥ तबहि बनिकसों कैसें कही । हमरी बात सुनो तुम सही॥ तुमपर कछु हम मागें जोय । अब हमकों दीजै तुम सोय ॥३७॥ तबही बनिक बोलो कर जोरि । सेठि बचन तुम सुनौ बहोरि॥ तुम लायक हमपै कह होय । जो मो पर जाचत हौ सोय ॥३८॥ | तबही सेठि फिरि कैसे कही । हमरी बात सुनो तुम सही ॥ | तुमरे घर पुत्री है सार । हम सुतकों परनो सुखकार ॥३६ छंद गीता। करजोरि करि तब बनिक बोलो सेठि सुनो मन लायकें। कोटी जु ध्वज तुम साहु जानौ मै दरिद्रो आयकें। AAVAVAAVAAAAAVAVAN For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा AAVAVASAWAVASAVAVAVAAVA तुमरी जु सरवरि को जु नाही बात सुनो सुखकार जू । तुम जोग लायक हम जुनाहीं यह सुनो निरधार जू ॥४०॥ इतनी जु सुनि करि सेठि बोलो बनिक सुन निह● सही। लक्षमी जु अति चंचल सु जानौ कहुँ सदां जु रही नहीं ॥ अाखरि जु हम तुम एक सबही बात सुनो मन लायक। ज्यों त्यों संवोधो बनिक तबहीं लई कबूल करायकैं ॥४१॥ दोहा । अपनी अपनी गरजकों, इस जगमें नर सोय । कहा कहा करतो नहीं, गरज वावरी होय ॥४२॥ लक्षिमी लोभ दिखायकें, बड़ो करो सनमान । लई कबूल करायकैं , तसु पुत्री गुनवान ॥ ४३ ॥ AVACANUAVAAAAAAAAAG - For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौपाई | तुरतहिं पंडित लयो बुलाय | घरी मुहूरत दिन सुधवाय ॥ मंडफ पुनि तब दयो बाय । व्याह र ताको सुखदाय ||४४ || इत उत द्रव्य जुदै करि सोय । व्याह करो जेठे सुत कोय ॥ बाजे बजैं तहाँ सुखकार । जुवती गावैं मंगल चार ॥४५॥ भामरि परी तहाँ अब सोय । वह विधि आनँद मंगल होय || इस विघिस महसैन कुमार । सो परनो जानौ सुखकार ||४६|| दोहा - इस विधिसों जेठो कुमर, व्याहि लयो सुखकार । अब लघु सुतके व्याहको, बरनन सुन नरनारि ॥४७॥ चौपाई | मरहट देश बसै सुभजान । महापुरी तहां नगर बखान ॥ For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा w AAVAASANAVARANAS - सोभा बरनत होय अबार । मानौ स्वर्गपुरी अवतार ॥४८॥ ताहि नगर इक सेठि सुजान । सोमसैन तसु नाम बखान ॥ पूरव पुन्य उदय अब सोय । जाके घर लछिमी बहु होय ॥४६॥ ताके एक सुता अवतरी । मदनवती जानो गुनभरी ॥ सुन्दर रूप अधिक गुनधार । मानौ सुर कन्या अवतार ॥५०॥ ताकी सगाई टीका सार । बज्रसैनकौं भेजो हार ॥ पहुंचो विप्र धारापुर जाय । सुनिकै सेठि महा सुखपाय ॥५१॥ | नगर बुलावा दीनो जबै । जुरे नगर नर नारी तबै ॥ जुवतीं गावें मंगलचार । अनँद बघाए होत अपार ॥५२॥ घरी मुहूरत दिन सुधवाय । टीका कुमरको लयो चढ़ाय॥ जाचक जनकों दान जु दयो । सज्जनको सनमान सु लयो ॥५३॥ - Awrvie For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विप्र विदा कीनो पुनि जबै । दयो अतुल धन ताक तबै ॥ चलत भयो तहँ व सोय । दिन रुरातिगिने नहिंकोय ॥ ५४ ॥ चलत चलत जब कुछ दिन गए । महापुरीमें पहुँचत भए । सब वृत्तान्त कहो समझाय । सुनिकरि सेठिपरमसुख पाय ।। ५५|| सोरठा । मुहूरत दिन सुधवाय, सुभ लगुनै पठवाइयो । और सुनो मनलाय, जैसो कथन जुयाइयो || ५६ ॥ चौपाई | टीका दिन पहुँचो जब प्राय । तब तहां सजी बरात बनाय ॥ हयगय रथ बाहन करि सार । चउरंग दल साजे सवार ||५७|| अरवी सुतरी अरु करताल । तूर मृदंग भेरि कंसाल ॥ For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान ७ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सब सोभा जु बरनि करि कहीं। बढ़े कथा कछु अंत न लहौं ||५८ || चलत चलत जब कछु दिन गए । महापुरी में पहुँचत भए । डेरा बागन दीने जाय । तहां निसान रहे फहराय ॥ ५६ ॥ नेगचार तहँ वह विधि भए । थरु षटरसके भोजन दए || एक पहर निशि बीती जबै । सुभ बारौठो कीनो तबै ॥ ६०॥ हय गय रथ बांहन सजवाय । चउरेंग सैन सजी सुखदाय ॥ अरबी तरी तहँ बजवाय | नौबतिखानो दयो झराय ||६१ || तुरही सुरही अरु करनाल । तूर मृदंग झांझ धुनि ताल ॥ आतसबाजी छूटे सोय । बाजनके कुहराम जु होय || ६२ || इस विधिस दरवाजें जाय । बरकों देखि सेठि सुखपाय ॥ सोभो दीनो अधिक अपार । कौन कहै ताको विस्तार ||६३ || For Private And Personal Use Only कथा Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कंचन कलश दए तहँ सोय । खासा मलमल यादिक होय ॥ माल कुंडल कड़े दीने सुखकार । अरु दीने गजमोतिन हार ||६४ || खजाने दीने सोय । कहँ लौं ताको बरनन होय ॥ फिर ये निज डेरन माहिं । अनँद बधाए भए बनाय || ६५|| बहुत बात को कहै बढ़ाय । राखे तीन दिवस बिरमाय ॥ चौथो दिन लागो पुनि जबै । भई बरात विदा सो तबै ॥ ६६ ॥ पुत्रीको समझावै तात । सुन लीजो अब हमरी बात | कुलकी टेक चलो तुम सोय । जासौं मेरी हँसी न होय ||६७ || तुम जेठी जो कोउ होय । भूलि न उत्तर दीजो कोय ॥ | सासु हुकम तुम सिर पर धरौ। यह आज्ञा मेरी चित धरौ ॥ ६८ ॥ इस विधि सीख तात जब दई । पुत्री चितमें सब धरि लई ॥ For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कूच करो तहत अब सोय । दिन अरुरातिगिनैनहिंकोय ॥६॥ चलत चलत जब कछु दिन गए । धारापुरमैं पहुँचत भए । हा पहिले श्रीजिन मंदिर जाय । वरकन्याकौं धोक दिवाय ॥७॥ ही वसु विधि पूजे श्रीजिनचंद । जाते कटें करमके फन्द ।। फिर घर मैं बहु लीनी सार । जुवती गावें मंगलचार ॥७॥ है। जाचक जनकों दान सु दयो । सज्जनको सनमान सु लयो॥ इस विधिसों घर आये सार । अनंद बधाए होत अपार ॥७२॥ दोहा-इस विधिसों अब व्याह करि , निजघर आए सोय । और कथन प्रागें सुनो , जो कछु जैसो होय ॥७॥ जेठो लघु दोनो कुमर , व्याहि लए सुखकार । और कथन आगे भाविक , सुनो सबै विस्तार ॥७॥ PAVANAVASAVAN MAVAAAAAAAAAV For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ladki चौपाई। जेठो मनमें करत विचार । देखौ तात की दुविधा सार॥ जनम दरिद्रीकै अब सोय । ताकै मोकों परनो होय ॥७॥ कोटीध्वज जौहरीकै सार । सो परनो लहुरो जु कुमार ॥ य गय रथ दीने सजवाय । बहुत द्रव्य तहँ खर्च कराय ॥७६|| ऐसैं मनहिं विचारै सोय । मानै दोष लघुसों बहु जोय ॥ लघुतौ मानै बासों प्रीति । वह राखै वासों विपरीति ॥७॥ दोहा-इस विधिसों दोनो कुमर , रहत भए अब सोय । निज निज टेव न छोड़ई , जैसी जाकी होय ॥ ७८ ।। गीता छन्द । तिस काल लब्धि सु प्राय पहुँचो सो सुनो नरनारि जू । VAVAAAAAA VAAVAWANI For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा VASANA AAVAAVAVVANAGA एक दिन पुनि सेठि जानो चढो महल सुखकार जू ॥ सो सांझ समए करत संध्या जपत उर नवकार जू ।। बज्रपात जु तापै टूटो प्रान गए ततकाल जू ॥ ७ ॥ तहँ शुद्ध मन करि प्रान छूटे जपत उर नवकार जू । प्रथमहिं स्वरगके मध्य जानौ लयो सुर अवतार जू॥ तातें सुनो नर नारि सबही जपौ उर नवकार जू। जाके जपत दुख पाप छूटें होत भविदधि पार जू ॥ ८० ।। चौपाई। कोलाहल जु नगरमैं भयो । सबरो नगर तहां जुरि गयो॥ आए भूप तबहिं तहँ सोय । दोनौ सुतन समझावै जोय ॥१॥ जहतौ कालबली अधिकाय । जासौं जोर चलै कछु नाहि ॥ For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शेष खगेश महेश जु सोय । कालके बसमें हैं सब कोय ॥८॥ 18| इस विधि समझाए सु कुमार । दई दिलासा तब भूपाल ॥ सेठिके तनकों दग्ध कराय । निजनिजघरपहुँचेसब जाय ॥२॥ दोनौ भ्रत रहैं अब सोय । निज निज टेव न छाडें कोय॥ | इस विधिसों जु कछू दिन गए । श्रागें और जु कारन भए ॥४॥ एक दिवस भूपति दरवार । बैठो तो जो सभा मझार ॥ | मंत्रिनसौं तब भूपति कही । हमरी बात सुनो तुम सही ।।५।। पुत्र सेठिके हैं अब दोय । कहौ तातपद किसकों होय ॥ ६ तब मन्त्री बोलें करजोरि । हो महराज सुनो सु बहोरि ।।६।। न्याय रूप तो ऐसो होय । जेठे सुतकों दीजै सोय ॥ अरु लहुरो चतुरंग अपार । चाहौं ताहि देहु भूपाल ||८|| VAVARAVASAVAVALA AAAAAVAAD For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान १० www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 1 इतनी सुनिकें भूपति जबै । बज्रसैन बुलवाए तवै ॥ तबहीं भूपति कैसें कही । लेउ पितापद तुम व सही || तब कुमार बोलो करजोरि । हो महराज सुनो सु बहोरि ॥ जेठो भ्राता तात समान । ता श्रागें मोहि जोग न श्रान ॥८॥ विनहींकों दीजै भूपाल । हुकम करौं तुमरो दरहाल ॥ इतनी सुनिकें भूपति जबै | अधिक प्रसन्न भए सो तबै ॥६०॥ तुरत लयो महसैन बुलाय । सो भूपति दीनो पहिराय ॥ छपनकोटि जाके दीनार । ताको स्वामी करो ततकाल ॥ ६१ ॥ दयो सेठिपद ताकों सोय । यागें और सुनो जो होय ॥ व जानौ बज्रसेनि कुमार । नित जावै नृपके दरबार ||६|| साधै हुकुम नृपतिको सोय । भूपति अधिकप्रसन्न सु होय ॥ For Private And Personal Use Only कथा १० Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir cheendeheroenamewomentences अब जेठो महासैन कुमार । मतिको हीन सुजाति गमार॥६॥ | बरसीं बीतीं अब सोय । नृप दरबार न जावै कोय ॥ एक दिवश भूपति तब कही। बज्रसैन तुम अाबौ सही ॥४॥ जेठो भ्राता तेरो सोय । मो दरबार न आवै कोय ॥ बरपैंसी जुबीति अब गईं । घरही मैं रहै बैठो सही॥६५॥ | तब कुमार बोलो करजोरि । हो महराज सुनो सु बहोरि ॥ बिनकों तौ घर काम अपार । श्रावत नाहिं बने दरवार ॥१६॥ मोपर हुकुम तिहारो होय । तुम दरबार रहों नित सोय॥ इतनी सुनि करि भूपति जबै । अधिक पसन्न भए सो तबै ॥६७ तुरतहिं लयो गजराज मगाय । सो कुमरा दीनो पहिराय ॥ कुंडल कड़ा पहिराए जबै । साल दुसाला जानो तबै ॥८॥ CANOAAAAA For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान ११ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज मंत्रपद ताकों दयो । सबके ऊपर सिर मुख भयो । पुन्यथकी किमि किमि नहिं होय । पुन्य समानञ्चवरनहिं कोय ॥६६॥ इस विधि बज्रसैन कुमार । भोगें भोग तहां सुखकार ॥ भूप करै जु बड़ो सनमान | सौंपो राजको सबरो काम ||१००|| राज मन्त्रपद पायो सोय । सब पर हुकुम जु ताको होय ॥ जेठे भ्रातको राखै मान । हुकुम करै ताको परमान ॥ १ ॥ बहतौ जानौ दुष्ट गमार । लघुसों माने दोष अपार ॥ ऐसें रहत बहुत दिन गए । आगे सुनो जु कारन भए ॥ २ ॥ एक दिवस जेठो जु कुमार । मनमैं कैसो करत विचार ॥ लघु भ्राता मेरो जह सोय । सब पर हुकुम जु ताको होय || ३ || भूप करै ताको सनमान | वाको आदर जगमें जान ॥ For Private And Personal Use Only कथा ११ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाके आगे जानो सोय। मेरी बात न बूझे कोय ॥४॥ याधी रैन वीति जब गई । निज त्रियसों तब कैसें कही ॥ लघु भ्राता मेरो अब जान । जाको आदर करे जहांन ॥ ५ ॥ जा आगे जानौ अव सोय । रंकहु मोहि गिने नहिं कोय ॥ सब परजा करै हुकुम प्रमान । कोई न मानै मेरी श्रान ॥ ६ ॥ ताजा विष दे मारि। करों निकंटक राज सम्हारि ॥ सब पर हुकुम हमारो होय । हमहींकों पूछे सब कोय ॥७॥ चालि छंद । तब बोली धुरंधर नारी । पिय बात सुनो सु हमारी ॥ ऐसे भ्रातकों बैन उचारो। धृग जीवन जन्म तुम्हारो ॥८॥ तुम्हे तात समान सु जाने । तुम आज्ञा शिरपर माने || For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा दान - हा ऐसी चूक कहा है सोई । ता” बाको बिचारत द्रोही ॥६॥ तातै बलमा सुनि लीजै । ऐसी बात न फेरि कहीजै॥ ६ अब कहि सु कही तुम जोई । ऐसी कहन जोग नहिं तोई॥१०॥ बोलो तब दुष्ट गमारी । मेरी बात सुनो बरनारी ॥ निह. विष दै करि मारौं । और बात कछू न विचारौ॥ ११ ॥ तब बोली कैसें नारी । पिय बात सुनौ जु हमारी ॥ 12 बह तो कुलदीपक जानौ । अधिको गुनवंत बखानो॥ १२ ॥ बाके आगे जानौ सोई । तुम्है आँच न आवै कोई ॥ नित प्रति करौ भोग विलासी । बहतौ सु गुननकी रासी ॥ १३ ॥ तातें बलमा सुनि लीजै । ऐसे भ्रातकों द्रोह न कीजै॥ बोलो तब दुष्ट गमारी। मेरी बात सुनो बरनारी ॥१४॥ VAAVA For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष दै करि मारौ सोई । करौ और विचार न कोई॥ 18| फिरि कैसें नारि समझाबै । तासों कैसें बतलावै ॥१५॥ ३ भ्राता मारै मेरे कंथा । जु रि टूटै बांह तुरंता॥ करि बैरी अकेलो पावै । बहुतै तब कोप करावै ॥१६॥ फिर जन्म धरो मेरे सांई । ऐसो भ्रात मिलै कहुं नाहीं॥ कछु पूरब पुन्य कमायो । ऐसो भ्राता तुम पायो॥११॥ 1 तातै बलमा सुनि लीजै । ऐसी बात न कबहूं कीजै॥ फिरि बोलो दुष्ट जु कैसें । बरनारि सुनो तुम ऐसें ॥१८॥ बहु कहैं कहा अब होई । मारौ विष दै करि सोई॥ 13 तब बोली कैसे नारी । पिय बात सुनौ सु हमारी ॥१६॥ 18) पुत्रहुको मरन जु होई । फिरि देय विधाता सोई॥ VANAGAURAVASANAVANA For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा । जो भ्रात मरन कहुं होई। फिर मिलनो दुर्लभ सोई ॥२०॥ तातै बलमा सुनि लीजै । भ्राताकों द्रोह न कीजै॥ | फिरि दुष्टने कैसें कही है । मारौं निश्चै जु सही है ॥२१॥ बोली चतुरंग जु नारी । सांई सुन बात हमारी ॥ जह बात ठीक नहिं कोई । भ्राताकौं बिचारत द्रोही ॥२२॥ है जो कहुं भूपति सुनि पावै । अधिको तुम्हे दंड दिबावै ॥ | धन लक्षि लेय लुटबाई । अरु देश” देय कढ़ाई ॥२३॥ अपजस होबै जगमाहीं । जह कौन कुमति तुम्हे आई॥ . | तातै बलमा सुनि लीजै । ऐसी बात न फेरि कहीजै ॥२४॥ | इस विधिसों नारि समझाबै । बाके मन एक न अाबे॥ तब नारिसों कैसें कही है। हम बात सुनो जु सही है ॥२५॥ AVANAVAVAAVAJAVAJAVI - १३ For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । 1 जो दिवरा साथी होई । मेरो हुकुम न पालै कोई ॥ जो होय हमारी नारी । मेरी होबै श्राज्ञाकारी ||२६|| मारौ विष दै करि सोई । नहिं कोट चिनाऊं तोही ॥ इतनी सुनिकें तब नारी । जाने रुदन करो है भारी ||२७|| नैनन चले आंसू जाके । अति सोच हृदयँ भयो ताके ॥ मनमै सु विचारत एसें कौन बात करों में कैसें ॥२८॥ जो मारौं दिवरै सोई । मोकौं पाप सघन प्रति होई ॥ अरु जो मारों मैं नाहीं । मोकौं दोष लगाबे सांई ॥२६॥ जाकौं कौन कुमति श्रव थाई । जाके पाप हृदय गयो बाई ॥ ऐसें बह रुदन करती | कहुं नेक न धीर धरती ||३०|| तब बोली कैसें नोरी । पिय बात सुनो सु हमारी ॥ 1 For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा MRI मैं पालौं हुकुम तुम्हारो । दिवराकौं विष दै मारौं ॥३॥ १४ | फिर मेरे बचनकों कन्थ । तुम यादि करोगे तुरन्त ॥ है इतनी सुनि करिक कुमार । सुख पायो ताने अपार ॥३२॥ दोहा-इस विधिसौं तब दुष्टने , ताको करै उपाय ॥ और कथन अागे अबै , सुनौ सबै मन लाय ॥३३॥ चौपाई। रुदन करै अधिको वह नारि । मनमैं दुक्ख करौसु अपार ॥ 11 जवहीं प्रात भयो ततकाल । तहँतै नारि चली तब हाल ॥३४॥ 3 पहुँची भोजन साला माहिं । ताने रसोई दई चढाय ॥ विष डारो व्यंजनके मझार । बिष डारै पकवान मझार॥३५॥ | विषकी करी रसोई जबै । और सुनौ नर नारी तबै ॥ AverVAAAAAAAAAVA For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जसबल तबहीं लयो बुलाय । तासौं हुकुम करो सु बनाय ॥३६॥ देवर हैं नृपके दरबार । तिनहिं सुल्यावौ अब ततकार। 1 इतनी सुनिकरि जसबल गयो । जाय कुमरसौं कहतो भयो॥३७॥ भावजनै बुलवायो तोय । चलौ ढील कीजै नहिं कोय॥ है। इतनी सुनिक तबै कुमार । चलत भयो तहँ ततकार ॥३८॥ सो आयो निज ग्रेह मझार । तब असनान करै सुकुमार ॥ फिर पहुंचो जिन मंदिर माहिं । श्रीजिनवरके दर्श कराहि॥३६॥ फिर आयो निज गृह अब सोय। भावज पास पहुंचो जोय ॥ | तब भावज बोली सुखकार। भोजन करि लीजै सु कुमार ॥४०॥ तबहि कुमर फिरि कैसें कही । भावज बात सुनो तुम सही॥ मेरो भ्रात कहां अब सोय । बा बिन भोजन करौं न कोय।॥४१॥ -AVAAAVACANCAVAAG SenneKKesariha ranwere For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा दान Hal तबहीं भावज कैसे कही। उनके तन जु बिथा कछु भई॥ १५ ।। इतनी सुनिक तबै कुमार । भ्राता पास गयो ततकार ॥४२॥ जाय भ्रात सों कैसें कही। कौन विथा तुम तनमें भई ॥ तुरतहि लाऊं बैद बुलाय । तुमकौं नीको लेउ कराय ॥४॥ हा तबहि दुष्ट फिरि कैसे कही। अब तौ बिथा मेरी घट गई। BI तुम भोजन सुकरौ अब जाय। पीछेते मै करौ सुप्राय ॥४४॥ भ्रात हुकुमते चलो कुमार । पहुंचो जाय रसोई द्वार ॥ भावज देखि दिवरकों जबै । आँसू चलें नैन” तवै॥ १५ ॥ तब भावज सों कैसे कहीं। हमरी बात सुनो तुम सही । कारन कौन भयो तुम सोय । बदन मलीन सु दीखौ मोहि ॥४६॥ | इतनी सुनिक भावज जबै । कछू जबाब न दीनो तबै ॥ AAVACANALAYALAYALAVANAMAVALA AVARANA.BARAVAAAAAA For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AVANORAMANORANAVARAVANAVARANADA BI चंदन चौकी दई डराय । कंचन थार परोसोबाय॥४७॥ पट रस श्रादिक व्यंजन जानि। तवै परोसो भोजन प्रानि ॥ दया अंग ताके है सोय । देखत बनो न तापै कोय॥४८॥ छंद पद्धही। | जब ग्रास उठायो तब कुमार। भावज कर पकरो तबै हाल ॥ फिरि कहै दिवरसों तबै सोय । जे विष भोजन मति करौकोय॥४६॥ | तुम भ्रात करो मारन उपाय । मेरे बसकी कछु रही नाहिं ॥ इतनी सुनि करिकै तब कुमार। उठि ठाडो तब हूबो सु हाल ॥५०॥ | निज महलनमें तब गयो सोय। तसु नारि कहैतासों जु सोय॥ कह मलिन चित्त बालम सु अवै। इसको मोहि भेद सुनाउ सबै॥५१॥ | मन माहिं विचारै तब कुमार। कह भ्रात दोष भाषौं जुसार ॥ RVASANAPURVAVVVVANA For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा आखिर अबला यह नारि होय। छिनमें पुनि प्रघट करै जु सोय।।५२॥ है। तबहीं सु नारिसों कहै सोय । इसको फिरि भेद बताउं तोय॥ तुम करसु रसोई करौ त्यार । तो मैं भोजन तब करौसार ॥५३॥ | चतुरंग नारि जानी जुसोय । कछु भ्रात उपाय करो जु कोय॥ मुझ बलम बात मोसों छिपाहि। ताको हठ फिर कछु करोनाहि॥५४॥ जे चतुर नारि जानौ जु सोय । पति हठपर हठ नहिं करै कोय॥ 18| असनान करे ताने जु सार । पुनि करी रसोई तबै नारि ॥५५॥18 तब सोधि बलीता नारि जबै । जलगालनकी विधि जान सबै ॥ सो क्रिया शुद्ध जानौ सुनारि। तब करी रसोई तबै त्यार ॥५६॥ तब करिके रसोई त्यार भई । देखौ पुन्यतनो फल कैसोकही। सौधर्म मुनीश्वर तहां सार । ताही बनमें तप करत हाल ॥५७॥ For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAVADAV ३ 18| तिन तीन पक्ष कीनो उपास । तव छीन शरीर भयो जु तासु ॥ । भोजनके कारन तबै जान । आए नगरीमैं सो महान ॥५८|| जब दृष्टि परे मुनि अनागार ।निज त्रियसों बोलो तब कुमार॥ कारन अहार नगरी मझार । प्राबै जु मुनीश्वर सुनौ नारि ॥५६॥ इतनी सुनि करिके नारि कही।अब धन्य भाग बालम जु सही॥ यह धन्यधरी दिनअाजु सार। मुनिराज काज अाए अहार ॥६०॥ | इतनी सुनि करिकै तब कुमार। पड़गाहि ऋषीश्वर तहां सार॥ तब तीन प्रदक्षन देय जोय। पुनिनवधा भक्ति करी जुसोय ॥६॥ । तब दोष छयालिस टारि सार। तब दयो हाल मुनिकौं अहार॥ | फिरि जय जय शब्द जु गगनहोय। तहँ देव कहें कैसें जु सोय ॥२॥ अब धन्य भाग तेरो कुमार । तैं मुनि करपै कर धरो सार ॥ | फिरि मुनिती बनौं गए सोय । तहँ ध्यानाऽरूढ भए सुजोय ॥६॥ VAAVAAVAVAVASAAMANABRUAGAON For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा | तब पीछतें आपुन कुमार । भोजन सु करो तानें जु सार ॥ फिरि नारि सु भोजन करोजान।सोधन्य भाग निजको सु मानि॥६॥ दोहा-इस विधिसों ऋषिराजकौं, दीनो शुद्ध प्रहार ॥ धन्य भाग ताको सु अव , धनि जाको अवतार ॥६५॥ चौपाई। । भ्राताने जो करो उपाय । ताकी यदि करै कछु नाहिं ॥ हा अब सुखसौं तहँ रहै कुमार । अागे और सुनौ बिस्तार ॥६६॥ दिन अथयो निशि जवहीं भई। फिरि तब दुष्ट नारि सों कही॥ । कैसो मारो भ्राता सोय । जीवत फिरै मरो नहिं कोय॥६॥ । तबै नारि फिरि कैसे कही । हो भरतार सुनो तुम सही॥ काहं जनाइ दयो सो हाल । भोजन छांडि गयो ततकाल ॥६॥ जो मुझ झूठी जानो कंत । विषके भोजन देख तुरंत ॥ BeeMedicinehende LAVAIVARAVALAN For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAVAADAV 18 तबहि दुष्ट फिरि कैसें कही। फिरिक मारौ वाकों सही ॥६॥al ३ तब बोली कैसे बर नारि । मेरे वचन सुनो भरतार ॥ B कहा कुमति उपजी तुम्हे श्राय । क्यों अब वृथां जु पाप उपाय॥७०॥ 12 जाके करसों श्री ऋषिराज । लयो अहार सुधर्म जिहाज॥ सो किसहूको मारो कंत । वह मरनो अब नाहिं महंत ॥७॥ 18 इतनी सुनिकरि तबै कुमार । कहत भयो सुनियो वरनारि॥ | मारौं बाय भुलै करि सोय । ताको ढील करौ मति कोय ॥७२॥ ढार अहो जगति गुरुकी। तब बोली बरनारि, कंथ सुनो तुम सोई । सांच कहौं अब बात, तामैं झूठ न होई ॥ मेरे भरोसें कंथ, अब रहियो मति कोई । मोपैतौ भरतार , अब ऐसी नाहिं होई ॥ ७३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा DOCUB चाहें तो कोट चिनाउ , चाह सूरी धरदीजै । चाहौं तो भरतार , घरसे काढ़ सु दीजै ॥ इतनी सुनिक कुमार ,जानि लई मन माहीं। मैहीं करौं उपाय , जह करने की नाहीं ॥ ७४ ॥ दोहा-इस विधिसों भावज तबै , दिवरा लयो बचाय । धन्य नारि जे जगतिमें , करुना तिन मनमाहिं।। ७५ ॥ चौपाई। यहतो कथन रह्यो इस ठौर । आगे कथन सुनो अब और॥ एक दिवस जसुभद्र सु राय । वैठो तो सो सभा लगाय ॥६॥ चोर एक पकरो कुतवाल । नृपदरबार सु लायो हाल॥ तब भूपति सों कैसे कही । हो महाराज सुनो तुम सही॥७॥ घने दिवसको तसकर सोय। मूसे नगर जानै सब कोय ॥ ALANAKAMANANAVARA For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घने जीव मारै अधिकाय । आज पकरि पायो है ताहि ॥ ७८ ॥ इतनी सुनिकरि भूपति जबै । क्रोध करो तापर सो तबै ॥ जसवल लीने तबै बुलाय । हुकुम करो कैसें तब राय ॥७६॥ प्राण हरो जाके अब सोय । चन इक ढील करो मति कोय ॥ तब जसबल बोलो करजोरि । हो महाराज सुनो सु बहोरि ||८०|| तुमरे हुकुमतैं मारों सोय । पाप लगे मारेको तोय || इतनी सुनिकै भूपति कही । होय पाप तो बांड़ौ सही ॥ ८१ ॥ तब जसबल बोलो करजोरि । हो महाराज सुनो सु बहोरि ॥ तौ तुमहीं कौं पाप अपार । न्याउ नहीं नृपके दरबार ॥८२॥ फिर ऐसोई काम कराय । मूसिनगर जिय घात कराय ।। दोऊ विधि तुमहींकों पाप । सोई करो हुकुम जो श्राप ॥ ८३॥ For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान १९ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जोगीरासा । इतनी सुनि करि भूपति जबहीं मनमें विरक्ति होई ॥ धृग लछिमी यह राजसु जानौ जामें सार न कोई || माता मोहि पाप जु लागे छाडें अपजस होई ॥ जहतौ राज नरकगति देई जामें फेर न कोई ॥ ८४ ॥ किसको पुत्र पिता किसको किसके बाँधव भाई ॥ सबरे कुटुमकों पाप कमाबै नर्क केली जाई ॥ ऐसो राज न मोकों चहियें भृमाँ चतुर्गति माहीं ॥ राज करोंगो मुकति नगरको भूपतिके चित आई ॥ ८५ ॥ जेठे सुतको राज सु दीनो नृपने नीति विचारी ॥ सब जीवनस मागि क्षमा अब पहुंचो अरनि मकारी ॥ श्री सौधर्म मुनीश्वर के बजाय चरन शिर नाई || For Private And Personal Use Only कथा १९ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir WAAVAN श्री मुनिवर मोहि दीक्षा दीजो तासौं पार लगाई ॥८६॥ तब मुनिवर फिरि कैसे बोले धनि भूपति जगमाहीं॥ अाली अंतमें तैनै विचारी तुम सम और जु नाहीं॥ सप्त दिवस तेरी श्राव सुमाहीं बाकी रही है सोई॥ इतनी सुनि करि भूपति जवहीं अति ही बिरकत होई ॥७॥ चौपाई। केस लोंच कीने तब राय । नगन दिगम्बर भए बनाय ॥ पंच महाबत धारे सार ।भयो मुनीश्वर अरनि मझार॥८॥ जाव जीब सन्यास सुधार । त्योगो चरि प्रकार अहार॥ अंत समाधि मरन करि सोय । तजे प्रान शुधभावन होय ॥६॥ पंचम स्वर्ग लयो अवतार । भयो देवपद ताकों सार ॥ 11 तहँके सुख भोगै अब सोय । कहँ लगताको वरनन होय॥६॥ AAAAAAAS - AAVALAVAVA - For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है दोहा-इस विधिसों नृपराजकों , भयो देवपद सार ॥ और कथन आगे अबै , सुनो सबै विस्तार ॥११॥ चौपाई । अब भूपति सुत जानौ सोय। नाम जसोमति ताको होय ॥ सोतौ राज करै सुखकार । प्रागें और सुनो विस्तार ॥२|| है। मंत्री पुराने जानो सोय । बज्रसैन, राखे नहिं कोय ॥ सो घर बैठि रहो सु कुमार। कबहूं न जाय नृपति दरबार ॥६॥ | एक दिवस बह दुष्ट गॅमार । गयो हतो नृप सभा मझार ॥ भूपतिसैं तब कैसे कही । हो महराज सुनो तुम सही ॥४॥ मेरो लघु भ्राता भूपाल। श्रावन पाय नहीं दरबार॥ 12 बहती राज बिनाशन हार । निह● जानौ तुम भूपाल ॥६५॥ जो अब हुकुम तिहारो होय ।बाको करौं उपाय जु सोय ॥ AVACADAVOURVAVA AVWAVABOAVAVAR For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तबहीं भूपति कैसें कही ।चाहौ सो कीजौ अब सही ॥६६॥ | तोहि करो मंत्री में सही । कहि दीनी सो भूपति यही॥ इतनी सुनि करिकै सु कुमार। मनमें ऑनद बढ़ो अपार ॥७॥ फिरि आयो निज मंदिरमाहिं। मनमें कैसें कहै बनाय ।।। | अबतौ मौसैं नृप कहि दई। ताके मन कछु चिंता नहीं ॥८॥ | इस विधिसौं जानौ अब सोय । रहै निसंक महा सुख होय ॥ बहुत करो ताको सु उपाय । श्रागें और सुनो मनलाय ॥६६॥ | एक दिवस बज्रसैन कुमार। सोवत तो निज महल मझार॥ फाटक बंद दए करवाय । श्रागें और सुनो मनलाय ॥२००|| _ ढार अहोजगति गुरुकी । श्राधी रैनके माहि जागो दुष्ट गमार । सौतौ अब मनमाहिं कैसे करत विचार ॥ SAAMANAVASAVVVVVVVU For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा ताके महल मझार देउं सु अगिन लगाई । तासों जरै ततकाल दाउ लगो मेरो आई ।। १ ॥ तहँतै उठो ततकाल तासु महलपे जाई । दरवाजेते धाय तानै अगिनि लगाई। फाटिक जरे ततकाल पैठी महल जु सोई । धूमके उठे पहार अगिन प्रवेश जु होई ॥ २ ॥ यहतौ कथन इसथान रहो है सुनो नरनारी। अब सुरलोक मझार सुनियो चित्त विचारी॥ प्रथम स्वर्गके माहिं हरि बैठो दरबारा । अवधिज्ञान करि सोय इंद्र करै सु विचारा ॥३॥ देवनसों सुरराय कैसे कहें समझाई । वह बज्रसैन कुमार दान दयो मुनिराई ॥ For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ताको भ्राता सोय मारन हेत उपाई । सोबत है इह जानन दई सु लागाई ॥ ४ ॥ जो वह जरै कुमार प्रान तजै सु बनाई । तौ मुनिको प्रहार फिर देवै कोउ नाहीं ॥ दान की महिमा जाय फिर जु रहे नहिं कोई। ता हु बचाय मरन न पावें दोई ॥ ५ ॥ इन्द्र हुकुमतें देव चालो सु ततछन धाई । कूदो महलमैं सोय कुमर पास तब जाई || सुरने झटकी बांह आप गुपत जाई । कुमर त्रिया अब दोय तहँ जु उठे भहराई ॥ ६ ॥ देखें दृष्टि पसारि चारों ओर सोई । धुनके उठे पहार अनि प्रचंड जु होई ॥ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा २२ ANNAPNAVARANASANVAR जित चितबै तित सोय गैल रही कहुं नाहीं। तब बोली बरनारि भई कुमौति जु साँई ॥७॥ तब बोलो सु कुमार नारि सुनो तुम सोई। मनमें धीरज धारि चिंत करो मति कोई॥ जो आयो है काल तौ अब कौन उपाई। उरमें जपि नवकार और सरन कोउ नाहीं ॥ ८ ॥ देव सुनी यह बात धन्य कहै तब सोई। धनि धीरज अब तोयं तो सम अवर न कोई।। बज्र दंडसों हाल फोरि सफील जु डारी। काढ़ि दए सो देव तब दोनों नरनारी ॥६॥ गहने पहिरें नारि तहँ जु बचे अब सोई। अरु लछिमी सु अपार सवही भस्म जु होई॥ AAAAAAAAAAVAVA For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस विधिसों सुर राय काढ़ि दए अब दोई। धन्य दान जगमाहिं तासम और न कोई ॥ १० ॥ छंद। अब आधी रैनिके माहीं। दोउ पंथ चले तब जाहीं ॥ जो करम करै सो होई । जाको मेटनहार न कोई॥११॥ वह कोमल अंगन नारी। सेजन की सोवन हारी ।। धूप देखि बदन कुमिलाई । पाय प्यादे चली सुजाई ॥१२॥ 12 सो कछुक दिननके माहीं। पहुँचे सु द्रोन बन जाई॥ बनहीं में रहैं अब सोई । बैठे नरनारी दोई ॥१३॥ | कुमराको बदन कुमिलानो।श्रांखिनतें नीर बहानो ॥ समझावै कैसें नारी ।पिय बात सुनो सु हमारी ॥१४॥ | संपति जो भस्म भई है । तातै रुदन करो जु सही है। SAVAVAAAAA ABAD For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा लछिमी जह चंचल होई । इसको पतियारो न कोई ॥ १५ ॥ ६ छिनमें यह भूप बनावै । छिनमें यह रंक करावै॥ । तातै बलमा सुनि लीजै। लछिमीको सोच नहिं कीजै॥१६॥ तुम हातनकी जु कमाई । फिरि अनि मिलै मेरे सांई ॥ इस विधिसों नारि समझावै । कुमाराकौं धीर्य बँधावै ॥ १७॥ 12 फिरि बोली कैसें नारी। पिय बात सुनो जु हमारी॥ B कंकन मो करको लीजै । गहने नगरीमें धरीजै ॥१८॥ A भोजन सांमा मेरे कंत । अब लावौ जाय तुरंत ॥ कंकन ले चालो कुमारा । पहुंचो नगरीके मझार ॥१६॥ कंकन धरो गहने जवहीं ।लामो भोजन सांमा तवहीं॥ असनान करो तब नारी । पुनि करी रसोई त्यारी॥२०॥ जल गालनकी विधि जाने। ईंधन सोधो पुनि ताने । YAVANANDAWAL - For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्रियबांन चतुर वह नारी । सो करी है रसोई त्यारी ॥ २१ ॥ किरिके तैयार भई है। भरताकौं टेर दई है ॥ तब पुन्य तनो फल सोई । देखो कैसो ततछिन होई ॥ २२॥ ढार ते गुरु मेरे उर बसो । दान बड़ो संसारमें दान करौ नर नारि।। दान जगतिमें सार है जासों होय भवपार ॥ टेक ॥२३॥ पहिताश्रव मुनिवर जहां ताही बनके माहिं । दुद्धर तपकरते जहां छीन शरीर बनाय ॥दान॥२४॥ पांच पांच उपवासजी कीने ते मुनि राय । कारन मुनि श्राहारके पहुंचे नगर सु जाय ॥दान०॥२५॥ सप्तदिवसलौ नगरमें अायो है अंतराय । नितप्रति मुनि फिरि जात हैं और सुनौ मनलाय॥दान॥२६॥ ViaNAVANAVARANAVANANDWANAPAN मा For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा e eee. अष्टम दिन लागो जबै भूप सुनी यह बात। करना बह मनमें करो कैसे तब पछितात ॥दान॥२७॥ ऐसो कोउ न नगरमें श्राहार देय शुध भाय । नितप्रति मुनि फिरि जात हैं श्रावत है अंतराय ॥दान॥२८॥ अबतौ अाजुमैं देंउ गो मुनिबरकौं पड़गाय । दोष छयालिस टारिक आहार देउं शुधभाय ।।दान||२६॥ इतनी कहिकै भूपनै डौंडी नगर दिवाय । हिंसक जिय है नगरमें भूपदए कढ़वाय ॥दान०॥३०॥ द्वारा पेखन नृप करो मनबचतन करि राय । पुन्य बिना मुनि ना मिले और सुनो मनलाय ॥दान०॥३१॥ बनतें मुनिवर डगरियो करना निधि प्रतिपाल। ईर्यापथ सोधत चले श्रीगुरु दीन दयाल ॥दान०॥३२॥ AVAAAAAMRAVAAVA remememeseeMee - For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAAAAAVAUGi दृष्टि परे तब कुमरके हरषो है मनमाहि । निज त्रियसों कैसे कही अावत हैं मुनिराय ॥दान०॥३॥ तबै नारिं कैसें कही सुनो बलम सुखकार । धन्य भाग हमरो अवै अाए दीन दयाल ॥दान॥३४॥ मुनिवरकों पड़गाइयो दीजै शुद्ध प्रहार । धन्य घरी दिन श्राजुको मुनिबर अाए द्वार ॥दान०॥३५॥ इनतनी सुनिकें कुमरनैं मुनिवरकौं पड़गाहि। नबधा भक्ति तबै करी करिकै तब सुध भाय ॥दान॥३६॥ दोष छयालिस टास्कैिं दीनो शुद्ध अहार । देव दुंदभी तब बजे बरषे फूल अपार ॥दान०॥३७॥ जय जय शब्द जु गगनमें देव करैं जैकार । धन्य भाग तेरो कुमर मुनिकों दयो आहार दान०॥३८॥ UPAAAAAABAR For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा सरMetroM मुनिवर तो बनकौं गए करुनानिधि ते सार। पीछे तब भोजन करो दोनों हैं नर नारि ॥दान॥३६॥ इस विधिसों जब कुमरने मुनिकौं दयो बाहार । ऋषिकरपै कर जब धरो धनि जाको अवतार ॥दान॥४०॥ चौपाई। | भूपकान तब परी अबाज । देव दुन्दभी बाजै अाज ॥ भूपति जानी मनमें सार । काई मुनिकौं दयो अहार ॥४१॥ जय जय शब्द गगनमैं होय । मेरो भाग भयो नहिं कोय ॥ जसबल तुरत दए पठवाय । देखौ कौन तलास कराय ॥४२॥ अायो देखि जब जसबल कही। हो महराज सुनो तुम सही ॥ परदेशी नरनारी दोय । बैठे बनमैं ते अब सोय ॥४३॥ | तिन श्रीमुनिकों दयो अहार । बरषे हैं तहँ फूल अपार ॥ LAV For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir VAAVAVANAVANAAVAAVAVI | इतनी सुनि करिकै भूपाल । मनमें करत विचार सुहाल ॥४४॥ हा मेरे नगरमें फिर फिर गए । काहू भाग न ऐसै भए । धनि वह पुन्यवंत नरनारि । चलिक मिलाप करौंमैं सार ॥४५॥ डौंडी नगरमें दई दिवाय । परजा लीनी सबै बुलाय ॥ । मंत्री श्रादि जुरे परधान । चलो मिलनकौं भूपति जान ॥४६॥ . छंद पद्धड़ी। हय गय रथ बाहन चले सार । चवरंग सैन लीनी सु लार ।। अरबी सुतरी बाजै महान । फहरात चलें आगे निशान॥४॥ | इसभांति नृपति चालो खुसाल । पहुंचो बनमें तसु पास हाल॥ गजकी चिकार सुनी सु जबै । सो डरी नारि ताकी सु तबै॥४८॥ | सो परी पियाके गोदमाहिं । तसु बलम कहै तासों बनाय॥ | मुनिराज अहार दयो जु सोय । चिंता हमकौं तौ कहा होय ॥४६ For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान २६ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सो जानी नृपने तबै फिर जब दो इतनी सुनि करिकैं तब कुमार । मनमें आनंद बढ़ो अपार ॥ सार । मो सैन देखि डरपी सु नारि ॥ पठाय । श्राबैं जु मिलनको तुम्है राय ॥ ५०॥ व सैन सहित पहुंचो सु राय । सब प्रजा संगताके सु जाय || ५१ || गजतैं उतरो तब भूप हाल । विततैं आयो तबहीं कुमार ॥ भूपति मिलाप तब करो सार । चितमे हरषो तबहीं कुमार || ५२|| कैसे मिलाप तब भयो सोय । मानो जन्म मित्र जे मिले दोय ॥ वहीं कुमारसों भूप कही । तुम धन्य जन्म अवतार सही ॥५३॥ तैं मुनिकरपै कर धरो सोय । तो सम नर अब दूजो न कोय ॥ फिर गजपर बैठारो कुमार | चंडोल चढ़ी ताकी सुनारि ॥ ५४ ॥ नगरी मैं पहुंचो तबै जाय । निज महलले गयो तबै राय ॥ पहिराय दयो तबहीं कुमार । बस्त्राजु भरन जानो अपार ॥५५॥ For Private And Personal Use Only कथा २६ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org यह तौ कथा रही इस कौं सलदेश बसे सुभ सो नगरी महिमा को सनमान करो धिको बनाय । षटरस भोजन दीने जिमाय ॥ अरु द्वादश नगरी दई राय । न्यारे जु महल दीने कराय || ५६ || देखो मुनि दान तनो प्रभाय । तबकुमर दुक्ख सबही पलाय ॥ इस भांति कुमर जानो जु सोर । नित भोग विलाश करें अपार ॥५७॥ या नर नारि जु सुनो कान । वित माफिक दीजै सदा दान ॥ इस भांति कुमर पुरदोन माहिं । सुखसों निवसे कछु दुक्ख नाहिं | ५८ || दोहा - इसविधिसों पुनि कुमर तब, दोन नगरमें सार । भूप करें सनमान नित, भोगे सुक्ख अपार ॥५६॥ चौपाई | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ठांय । श्रागें और सुनो मनलाय ॥ सार । पोदनपुर नगरी सुखकार ॥ ६० ॥ कहै । स्वर्गपुरी मानौ वह लहै ॥ For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा AAAAAAAAAB.ne ताही नगर इक सेठि सुजान । मकरध्वज तसुनाम बखान ॥६॥ पूरव पुन्य उदै सुखकार । लछिमीको ताके नहिं पार ॥ सूर्यकला ताकें वर नारि । मानो सूरजकी उनहारि ॥२॥ तासम रूप अवर नहिं कोय । मानो देववधू जह होय ॥ शील धुरंधर गुनकी खानि । पतीव्रता बह नारि बखानि॥६॥ ताको सोर भयो जग माहिं । तासम रूपवती कोऊ नाहिं॥ इक दिन ऐसो कारन भयो । सेठि तबै परदेशन गयो ॥६४|| कारज बनिज गयो गुनवान । अागें और सुनो व्याख्यान॥ इक बिद्याधर ठगई करी । सेठिरूप कीनो तिस घरी ॥६५॥ नारि छलनके कारन सोय । पोदनपुरकों रमतो होय ॥ ताके महलन पहुंचो जाय । तासों कैसें तब बतलाय ॥६॥ में आयो तेरो भरतार । क्यों नहिं श्रादर करै सु नारि॥ VAVAVANAMAVAVALAMANAVARIA For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir VAA | नारि हु जानी निश्चै सोय । आयो बालम मेरो होय ॥६॥ | तौलों नारि पुन्यतै सार । अायो सेठि तबहि ततकोर॥ दोनों ठाड़े एक स्वरूप । मानो सांचे ढरे अनूप ॥६८।। | दोनोंमैं अब झगड़ो होय । ताके प्रांगन ठाड़े दोय ॥ बहतौ कहै मेरी अब नारि । बह कहै मै याको भरतार॥६६॥ नारि देखि अति विस्मय भयो । कह बिधना मोकों निरमयो॥ एक स्वरूप खड़े जे दोय । कह जानै मेरो पति कोय ॥७॥ शीलवती नारी सुखकार । कहति भई तिनसों बचसार॥ दोनो रहो नगरमें सोय । जौलों तुमरोन्याव न होय ॥७॥ न्याउ निबेरे जब भूपाल । सो होसी मेरो भरतार ॥ दोनो महलते दए कढ़ाय । आगे और सुनो मनलाय॥७२॥ नारि चली निजघरतें सोय । संग लए तब ताने दोय ॥ AAVATABACUMBAVANAVAJAVI AAAAAVAT For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान २८ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जब पहुंची नृपके दरवार । खैचिकरी ताने सु पुकार || ७३|| हो महराज अरज सुनि लेउ । मेरी अरजी चितमें देउ ॥ एक स्वरूप खड़े जेदोय । इनमें मेरो पति है कोय ॥७४॥ | मेरो न्याव करौ तुम भूप । न्यायवंत तुम अधिक अनूप ॥ इतनी सुनिकें भूपति जबै। मंत्रिनसों बोलै पुनि तवै ॥ ७५ ॥ जाको न्या करौ सोय । छिन इक ढील करौ मतिकोय ॥ इतनी सुनि करि मंत्रिन कही। हो महराज सुनो तुम सही ॥ ७६ ॥ एक स्वरूप खड़े जे दोय । तिल तुस इनमें फेर न कोय | दैव गती जानी नहिं जाय । हमहूंतें जह होय न न्याय ॥७७॥ चाह तहँ निमटावै जाय । हमरे ध्यान न श्रावै राय ॥ तबै नारि फिरि कैसें कही । हो महराज सुनो तुम सही ॥ ७८ ॥ जो तुमपै जह न्याव न होय । जसबल संग सु दीजै मोय ॥ For Private And Personal Use Only २८ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAVAAAAAAAOON संग जांय मेरे जे दोय । तासों सकती करें न कोय ॥७॥ अंत न्याउ लैहों निमटाय । हो महराज सुनो मनलाय ॥ इतनी सुनिक भूपति कही । जसबल संग जु दीजै सही॥८॥ चलति भई तहत सो नारि । देशन देश फिरै दुख भार ॥ जहां जाय तहँ न्याउ न होय ।न्यायनिपुन दीर्ष नहिं कोय॥१॥ बहुत बात को कहै बढ़ाय । जाने मझाए वावन राय ॥ न्याउ भयो ताको नहिं कहीं । रुदन करै अधिको तब सही॥२॥ फिरि मनमें तिय करो विचार । दोन नगर भूपति दरबार ॥ तापर मैं जैहौं अब सोय । जौ बाहपै न्याउ न होय॥२॥ जौ नहिं न्याव करै भूपाल । तो मै प्रान तजौं ततकाल ॥ चलति भई तहँतै अब जोय । द्रोन नगरमैं पहुंची सोय ॥८॥ जब पहुंची नृपके दरबार । बैंचिकरी तानै सु पुकार ॥ DASAVA V For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान हो महराज अरज सुनि लेउ । हमरी अरजी चितमें देउ॥५॥ ही था A एक स्वरूप खड़े जे दोय । इनमैं मेरो पति है कोय ॥ में मझियाए बाक्न राय ।मोकौं पति दीजै जु मिलाय॥६॥ इतनी सुनि करि भूपति जबै । डोंडी नगर दिवाई तबै ॥ सब नगरी लीनी बुलवाय । मंत्री श्रादि जुरे सब अाय॥८॥ मंत्रिनसौं तब भूपति कही । न्याउ करौजाको अब सही॥ तब मन्त्री बोले करजोरि । हो महराज सुनोसु बहोरि॥८॥ सहज न्याव जाको है नाहिं । दैव गती जानै कोई नाहि ॥ बात न्यायकी होती राय । सोजाती किमि बावन राय ॥४॥ तिनपै भयो न्याउ जह नाहिं । अचरज वात कही नहिं जाय॥ तातें भूप सुनौं तुम सोय । हमहूंत जह न्याउ न होय ।।।६०॥ इतनी सुनिक नारी जबै । रुदन करै मनमैं बहु तबै ॥ VACAVACADAV २९ For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरन भयो मेरो अब सोय । काहूँतें जह न्याव न होय ॥ ६१ ॥ इतनी सुनिकरि बोलै राय । बज्रसेनिकौं लेउ बुलाय ॥ बाके बुतैं जु निबटै सोय । तौ अब सुजस हमारो होय ॥६२॥ जसबल तुरत दयो पठवाय । सो कुमारकों लायो जाय ॥ देखत सभा उठी हरषाय । सिंहासन लीनो बैठाय ॥६३॥ चालि छंद । तब भूपति बोले कैसें । सुन कुमर बात अब ऐसें ॥ जह दीजै न्याव निमटाई | होय सुजस तुम्हारो भाई || ४ || हमरो इतनो जस होई । बाके राजमें निमटो सोई ॥ तब कुमर कहैं फिरि कैसें । महराज सुनो तुम ऐसें ॥६५॥ जह तुच्छ न्याव है सोई । सो तौ निमटै नहिं कोई || जो कहूं अब दीरघ श्रावै तौ कौन ताहि निमटावे ||१६|| For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा इतनी सुनिक तब राई । मनमें बहुतै सुख पाई ॥ Ma तब भूपतिके मन आनी । जह न्याव करै जु निदानी॥७॥ | कुमरानै घड़ा मगवायो । सो तौ दरबार धरायो॥ २ तब बोलो कैसें कुमार । दोनो बात सुनो अधिकार ॥८॥ जो बैठे घड़ाके माहीं । तहीकी नारि बनाई ॥ 1 इतनी सुनिकै ठग जवहीं । श्रानंद करो मन तबहीं ॥६॥ अब नारि मिली जह मोई । निह● करि जानो सोई॥ तब सेठि कहैं मनमाहीं। अब नारि मिलै मोहि नाहीं॥३००॥ | फिरि विद्याधरने जबहीं । तुछ रूप जु कीनो तबहीं॥ तब बैठो घड़ाके माहीं । देखें नृप चित्त लगाई ॥ १ ॥ तब कुमरा जानी सोई । जहतौ ठग विद्या होई ॥ फिरि तासों कैसे कही है । कढ़िाव घड़ाते सही है॥२॥ Accorrenesirector Nevervem.1AMMAR For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उचारी ॥ चढ़वाई ॥ ३ ॥ हम जानी नारि सो लयो है घड़ातें खंभासों खँचि विद्याभाजी पुनि तहँ तब काढ़ि तिहारी । ऐसे कुमराने कढ़ाई । ताकी मुसकैं बंधाई । ताक बहु मारु दिवाई || तबहीं। ठग रहि गयो ठाड़ो जबहीं ॥ ४ ॥ दयो है । तब सेठि बुलाय लयो है ॥ I तब कुमरा कैसें कही है । लेउ नारि तिहारी सही है ॥ ५ ॥ नारीसों कहै समझाई । तेरो न्याव भयो कै नाहीं ॥ तब नारि कहै पुनि कैसें । कुमरा सुन बचन जु ऐसें ॥ ६ ॥ अवतार धन्य है तेरो । भरतार मिलायो मेरो || तैनें मेरो शील रखायो । तैने जु न्याव निमटायो ॥ ७ ॥ तियकंथ मिले अब दोई। तहँ जु चले तब सोई ॥ सब कहत सभा नरनारी । जाको मात धन्य अवतारी ॥ ८ ॥ For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान ३१ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तब भूप कहै मनमाहीं । कैसें जु बिचार कराहीं ॥ जह न्यायवंत अधिकारो । जातैं राज चलै सु हमारो ॥ ६ ॥ तुरतहिं गजराज मगायो । कुमरा असवार करायो ॥ कानन कुंडल पहिराए । हातन मैं कड़ा डरबा ॥ १० ॥ गल में गजमोतिन माला । पहिराए साल दुसाला ॥ मंत्रीपद ताहि दयो है । सबमें शिरमौर भयो है ॥। ११ ॥ सब राज काजको भार | सौंपो ताक भुपाल ॥ बहुत बात को कहै बढ़ाई | दयो बांटि राज चौथाई ॥ १२ ॥ देखो दान तनो फल सोई । कैसो जो ततछन होई ॥ तातें नरनारि सुनीजै । नित दान चतुर्विधि दीजै ॥ १३ ॥ जह दान समान न कोई । जासों जन्मसुफल होई ॥ सुरगादिकके सुख पावै । अनुक्रम शिवपुरको जावै ॥ १४ ॥ 1 For Private And Personal Use Only कथा ३१ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HARNAMANAVARANAGANA सोरठा-सुन तातै नर नारि , दान चतुर्विधि दीजिये। भव भव सुखदातार, इस भवकों जस लीजिये।। १५ ।। दोहा-राज मन्त्र पद कुमरकों , दयो तबै भूपाल। _ और कथन अागे भविक , सुनो सबै नरनारि॥ १६॥ चौपाई। यह तो कथा यहांई रही । अबतौ धारापुरमै गई । | राज करै सु जसोमति राय । मंत्री है महासैन बनाय ॥१७॥ ताके मंत्र थकी अब सोय । राज चौथाई रहो न कोय ।। | दाव्यो समीपी राजन पान । प्रागें और सुनो व्याख्यान॥१८॥ एक दिवस भूपति जह कही । हो महसेनि सुनो तुम सही। | लीजै सैन सबहि सजवाय । अरि बाटै तिन मारौ जाय॥१६॥ इतनी सुनिक भूपति जबै। सैन सजाई तानै तबै ।। VASANAVANAMAVASAVAVAN For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा AAMAAVACANADAVACAC हय गय रथ बाहन सजबाय । चलो तहाँतै कोप कराय ॥ २०॥ जब रनभूमि पहुंचो जाय । कोपोअरि तहँतै सु बनाय॥ जुद्ध भयो तिनसों अब सोय। पुन्य बिनासु विजय नहिं होय॥२१॥ | बैरी दाव तब कीनो जबै । लूटी सैन ताकी पुनि तबै॥ । हय गज रथ बाहन सु बनाय। ते लीने सवही जु छुड़ाय ॥ २२ ॥ आयो भजि तबहीं सु कुमार। सो पहुंचो नगरीके मझार॥ | पाई खबरि भूपतिने जबै । सो दरबार बुलायो तबै ॥ २३ ॥ कोप करो नरपतिने सोय । मेरो राज दीनो सब खोय ॥ । तुरतहिं गर्धव लयो मगाय । तापै दयो महसैन चढ़ाय ॥ २४ ॥ । अरु मुख कारो कीनो जबै । बहुत दंड दीनो सो तबै॥ फिरि सब नगरी माहिं फिराय। ताके आगे ढोल बजाय ॥ २५ ॥ | फेरि देश” दयो कढ़ाय । धन लछिमी सब लई लुटाय॥ UAGAURAVAAAAAAA For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५ IBा तब बोली ताकी बरनारि । मेरे बचन सुनो भरतार ॥२६॥ 12 मारो भ्राता तुम अब सोय । कैसो राज निकंटक होय ॥ 12 में बरजे मानी नहिं कोय ।ताको फल भुगतौ अब सोय॥२णा तातें सुनो सबै नरनारि । बैर भाव छाडौं दुखकार ॥ | समता भाव गहो अब सोय । तासौं पुन्य बट्टै बहु कोय ॥२८॥ दोहा-कुमर दयो कढ़वायकैं , लक्ष्मी लई लुटाय। और कथन श्रागें अबै , सुनो सबै मनलाय ॥२६॥ चौपाई। । एक दिवस भूपति दरबार । बैठो तो सो सभा मझार ॥ एक जौंहरी लयो बुलाय । घने दिननको विरध बनाय ॥३०॥ तासों भूपति कैसें कही । हमरी बात सुनो तुम सही॥ किस विधि राज चले हम सोय। ताको भेद सुनाबहु मोय ॥३१॥ AAAAAAAAABARVASNA For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान ३३ कथा vemenercheoroeneheneeeeeeeee तवहि विरघफिरि कैसे कही। हो महराज सुनो तुम सही ॥ जो प्रावै बज्रसेन कुमार । तौ तुम राज चले सुखकार ॥३२॥ तबहीं भूपति कैसे कही । बहतौ अगिन जलायो सही॥ | सो कहतै आबै अब सोय । मै नीके करि बूझौं तोय ॥३३॥ | तबै जौहरी कैसे कही । हो महराज सुनो तुम सही ॥ पुन्यवंत नरकों अब सोय । संकट दुख व्यापै नहिं कोय ॥३४॥ सवैया तेईसा। पुन्य थकी महराज सुनो अब पावकः निह. जल होई। पुन्य थकी श्रीपाल सुनोअब सागर पार भयो तरि सोई॥ पुन्य थकी महराज सुनो अरु गजकों ग्राह नहीं भय होई। पुन्य थकी महराज सुनो अहिके मुखते पुनि अमृत होई॥३५॥ पुन्य थकी महराज सुनो बनतै नगरी पुनि होय निदानो। VUVAGAVARVASNAPOONA For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir roenwweneneracheenneneneonew पुन्य थकी महराज सुनो पुनि घर घर ताको अादर जानो। पुन्य थकी महराज सुनो अब दुर्जनः बह सज्जन जानो। तातें सुनो महराज अवै सो पुन्य बड़ो जगमैं सुबखानो॥३६॥ चौपाई। BI पूरब पुन्य करो सु कुमार ।जरोनहीं सो अगिन मझार॥ सो तौ द्रोन नगरके माहिं । मंत्रीपद राजाको जाहि ॥३७॥ | तवहीं भूपति कैसे कही । तुमने कैसें जानी सही ॥ | तबै बिरध बोलो करजोरि । हो महराज सुनो सुबहोरि ॥३८॥ त्रिय तौ एक पुरुष दो जानि । ताको न्याव पड़ो सो आनि॥ P काहूँ निमटायो नहिं जाय । ताने मझाए बावन राय ॥३६॥ | तुमहूंपै बह आई सही । तुम परन्याव जुनिमटो नहीं॥ ३पहुंची दोन नगरके माहिं । वज्रसेनि दीनो निमटाय ॥४०॥ SAVANAVARANASeANAVARAN For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा ३४ ACCCCAWAGAAVAHARArAVA सो जस फैलो सब जग माहिं । तब हमने जानी जहराय ।। | इतनी सुनि करि भूपति जबै। मनमें विचार करै सो तबै ॥४१॥ जो काहूकों पठऊ सोय । तो वह श्रावन को नहिं कोय॥ ताते मैहीं ल्यावन जाय ।सो कुमारकों लाउं बुलाय ॥४२॥ | तुरतहिं सैन लई सजवाय । हय गय रथ वाहन सु बनाय॥ चलत भयो तहँ तें अब सोय । दिनअरुरातिगिनेनहिंकोय ॥४॥ चलत चलतजबकछु दिन गए। द्रोन नगरमे पहुंचत भए । ऐसी खबरि कुमर तब पाय । श्रावत लेन तुम्हे सो राय ॥४॥ इतनी सुनि कुमारने कही। मुख नहिं देखों नृपको सही॥ लौटि जाय निज घरकों सोय । जियतमिलापनहमसें होय ॥१५॥ अडिल्ल । इतनी सुनिके नारि कहै बचसार हो। ऐसी कहनी जोग नहीं भरतार हो For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आबै बैरी ग्रेह पहनो है सही । ऐसी कहौ न बात नारि ऐसें कही ॥४६॥ चौपाई। Bघर आयो तुमरे भूपाल । तासु करौ सनमान सु हाल ॥ धन्य नारि जे हैं जग माहिं । ऐसी पतिकों सीख दिवायें ॥४७|| Bइतनी सुनिकै तबै कुमार । नृप स्वागतकों निकसोद्वार ॥ अादर बहुत करो सनमान । षटरस भोजन बीरा पान ॥४८॥ तवहीं भूपति कैसें कही। कुमर बात तुम सुनियों सही ॥ चूक माफ हमरी अब होय । चालौ देश आपने सोय ॥४॥ तबै कुमर फिरि कैसें कही । हो महराज सुनो अब सही ॥ धारापुर नगरीके माहिं । जीवत तौ चलनेको नाहिं ॥५०॥ तबही भूपति ऐसें कही । भो कुमार सुनियों तुम सही॥ जो तुम अब नहिं चलौ कुमार। तो में प्रान तजों तुम द्वार ॥५१॥ AAAAAAWAVANORA For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा तब बोली कैसे बरनारि । मेरे बचन सुनो भरतार ॥ अब तौ चलौ देशको कंत । ढील करौ मति चलौ तुरंत ॥५२॥ इतनी सुनिकै तबै कुमार । चलनेको तब करो करार ॥ भूपतिके दरबार सु जाय । कहत भयो नृपकों शिरनाय ॥५३॥ जो देवौ अब अाज्ञा मोय । तौ मैं जाउं देशकों सोय ॥ मोहि लेन अाए भूपाल । तातै दीजै अाज्ञा हाल ॥५४॥ तबही भूपति कैसे कही । कुमर बात तुम सुनियो सही॥ अब जुकही सुकही तुम सोय । फिरि ऐसी कहनो नहिं कोय॥५५॥ तब बोलो कैसें जु कुमार । हो भूपति मेरे हितकार ॥ एक वार तो जाऊं सोय । फिरि आऊं तहँ रहौं न कोय॥५६॥ तब भूपति नै जानी सही । अब कुमार रहनेको नहीं॥ जो हठ करि राखौं अब सोय । निह. भंग प्रीतिमैं होय ॥५॥ VACAN Inavurunumuruvvavaununu AGAVA9 RNAND For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आज्ञा दीनी तब भूपाल । जावौ देश आपने हाल ॥ भूपति दीनो तब पहिराय । बस्त्राऽभरन महा सुखदाय ||५८ || चउरंग सैन दई तब भूप । हय गय रथ बाहन जुअनूप ॥ फिरि यो निज ग्रेह मकार । चलनेको तब भयो तयार ॥ ५६ ॥ Rani पंडित लयो बुलाय | घरी मुहूरत दिन सुधवाय ॥ चलत भयौ तहँ जु कुमार । चतुरंग सैन सजी सुखकार ||६०|| पड़ी छंद । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सवार चलें ताकी सु लार ॥ हयगय बाहन रथ चले सार । गज ऊपर बारी धराय । तापर सवार भयो सुजाय ॥ ६१ ॥ अब नारि चढ़ी चंडोल सार । इस भांति चलो तहंत कुमार ॥ रवी सुतरी बाजैं महान । फहरात चले श्रागें निशान ॥ ६२॥ ठाड़े नकीब बोलें जु सार । ऐसें नृपसंग चलो कुमार ॥ For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान बहु बात कहै पुनिको बढ़ाय । सो चलत भए तहते सु राय ॥६॥ ३६ / अब चलत चलत कछु दिन विताय। धारापुरमें पहुंचे सु जाय ॥ | नगरीमें खबरि भई सु जाय । पुर” निकसे सब हर्ष लाय ॥६॥ आगें हूँ लीनो तब कुमार । आनंद बढ़ोतिनकों अपार॥ निज महल लै गयो तबै राय । सनमान करोतिनको बनाया॥६५॥ पहिरायो नृपने तब कुमार । फिरि मंत्रीपद दीनो जुसार॥ अब दान तनो फल तरु सुजाना कैसो जो ततछन फलो भान ॥६६॥ | ताते नरनारि सुनो जु सबै । नित दान चतुर्बिधि देहु अबै॥ | इस भांति कुमर जानो जुसार । अायो निज नगरीके मझार॥७॥ दोहा-इस विधिसों जु कुमार अब, आयो नगर मझार । और कथन अागें भविक, सुनो सबैनर नारि ॥६॥ veeeeeeeeeee For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AVAVARANAVARANAVANATAVASAVARANAVA चौपाई। है। नृप महलनतें चलो कुमार । सो आयो निज ग्रेह मझार॥ सूने घर देखे तहँ जाय । बसैं काग तिनमे तहँ श्राय ॥६॥ भावज भ्राता देखे नाहिं । अधिक करी चिंता मनमाहि।। कही नृपति सों तानै जाय । हो महराज सुनो मनलाय ॥७॥ सूने मंदिर हमरे भए । भावज भ्रात कहां मो गए। तबहीं भूपति ऐसें कही । कुमार बात तुम सुनियों सही ॥७॥ तेरो भ्राता पापी होय । काढ़ि जु दयो देश” सोय ॥ छपन कोटि तुम्हरे दीनार । सो लेबौ राखो भंडार ॥७२॥ तब कुमार बोलो करजोरि । भो महराज सुनो सु बहोरि॥ तात समान जु मेरो भ्रात । सो तुमने काढ़ो अब दात ॥७३॥ | सो तो फिरै बननमें धाय । हम इहँ बैठे राज कराय॥ SAAMANAVARANAMAAVA For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा Convencncncncncncncmaandacnene तौ धृग जीवन मेरो होय । यह निश्चे करि जानौ सोय ॥७॥ जाको भ्रात फिरै दुखकार । ताके जीवनकों धृगकार ॥ तातें मैं अब ढंडों जाय । सोभ्राताकों ल्याउं बुलाय ॥७॥ तवहीं भूपति कैसे कही । हमरी बात सुनो तुम सही॥ सर्पहि दुग्ध प्यावं कोय । तौ वह विषही उगलै सोय ॥७६।। त्यों तुझ भ्राता सर्प समान । भूलि न दरशन कीजै अान॥ ह तबै कुमर फिरि कैसे कही । हो महराज सुनो तुम सही ॥७॥ ६ भ्राता बिन मो रहनो नही । सो अब बाकौं ल्याऊं सही॥ वार वार बरजै भूपाल । मोह थकी मानै न कुमार ॥७॥ | तबही भूपति कैसे कही । तोकौं जान देउं मैं नहीं ॥ | किंकर अब मैं देउं पठाय । तेरो भ्रात लेउं दुढ़वाय ॥७॥ भूप हुकुमतें जसबल जबै । चारि ओरकों दौरे तबै ॥ neeeeeeeee SONG For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir G AAAAAAAAAAAGarl सोतौ एक अरनिके माहिं । दोनो देखे तहां फिराहिं ॥८॥ ईंधनके धारै शिर भार । फिरें तहां दोनों नरनारि॥ तब किंकरने कैसें कही । कुमर बचन सुनियो तुम सही॥१॥ चलि छंद । अायो अब भ्रात तुम्हारो । जाने सब काम सम्हारो॥ अब तुमहुं बुलाए सोई । चलो ढील करो मति कोई ॥८॥ | तब दुष्टने कैसें कही है । हम बात सुनो जु सही है ॥ बाकों बहुत करो तो उपाई । कछु कसरि मैं राखी नाहीं ॥३॥ मारनको मोहि बुलावै । मेरी भुसखाल भरावै ॥ मैतो जानेको नाहीं । बेंचि ईंधन उदर भराई ॥४॥ तब बोली कैसें नारी । पिय बात सुनोसु हमारी॥ पुन्यवंत पुरुष जगमाहीं । भौगुन पर गुनहीं कराहीं ॥५॥ CAMPARAGARAA For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा ३८ दयावत पुरुष बह जानौ । अरु है सुगुननको निधानो। ताते ऐसो काज न होई । वह तो कुल दीपक जोई ॥८६॥ अरु तुम कह लायक सोई । ताको करौ उपाय जु कोई॥ तातै बालम सुनि लीजै । मन चिंता कछु नहिं कीजै ॥७॥ ऐसें पतिको समझायो । धीरज तब ताहि बंधायो ॥ तब दोनो चले नरनारी । पहुंचे निज नगर मझारी॥८॥ | गौडै पहुँचे तब जाई । कुमराने खबरि जु पाई॥ अंबर आभूषण जानो । भेजे तिनको सु बखानौ ॥६॥ जब निजघर पहुंचे जाई । तब भयो है मिलाप बनाई॥ सनमान कियो सुखकारी । दिये षटरस भोजन भारी ॥१०॥ फिर चाले दोनो कुमारा । पहुंचे नृप सभा मझारा ॥ बज्रसेनि कहैं तब कैसें । महराज सुनो तुम ऐसें ॥१॥ ३८ For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir BANAVARA AMARAVALAMAAAAAAAAADAV अायो मुझ भ्राता जोई। इन्ह देहु तातपद सोई॥ इतनी सुनिके तब राई । महसेनि दयो पहिराई ॥२॥ पुनि दयो है सोठिपद ताकों । फिरिकै भूपतिने जाकों ॥ अरु छपन कोटि दीनारा । फिरि सौंपि दए तिन सारा ॥६॥ फिरि छप्पन ध्वजा गढ़ाई । देशनमें कोठी चलाई ॥ इस विधिसों भ्रात बुलायो । ताको सब दुक्ख नशायो ॥६४|| जे धन्य पुरुष जगमाहीं । औगुन पर गुनहीं कराहीं॥ तिनहींको जीवन सार । तिनहीको धन्य अवतार ॥६५॥ दोहा-इस विधिसों जो कुमरने, भ्रात लयो बुलवाय ॥ और कथन अागें भविक, सुनो सबै मनलाय ॥६॥ चौपाई। रहत भयो महसेन कुमार । मनमें कैसे करत विचार ॥ N AVASAVAR For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा AVAVANATANAMAVARANAVARAVAVI जह लघु भ्राता मेरो जानि । बहुत करे मै ौगुन पानि ॥६॥ | जब मन अाय वाके यही । प्राण हने मो छोड़े नहीं ॥ मलिन चित्त सो रहै बनाय । चिंता करि कछु नाहिं सुहाय॥८॥ एक समय बज्रसेनि कुमार । कहत भयो भ्रातासों सार ॥ ऐसी चिंता ब्यापी कोय । बदन मलीन सु दीखौमोय।।६॥ सो कहिये मोसै भृम खोय । मनमें संका करौ न कोय ॥ मनकी गांठि खोलि करि सबै । सांची भ्रात कहौ सो अबै ॥४००।। १ तबै दुष्ट फिरि कैसें कही। जाकौं कहत लाज नहिं भई। जब मै देखौं तुम्है कुमार । मोकौं चिंता बढ़े अपार ॥ १ ॥ जौ मरनौ तेरो अब होय । तो मै रहौं निकंटक सोय ॥ | जह बरतै मेरे मनमाहिं । तोसों सांच कही समझाय ॥२॥ ABVivaaNAVARABAR For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir VAAVACAVAAAAAVORG ढार जोगीरासा। इतनी सुनिकरि कुमराजबहीं मनमें बिरकित होई । धृग यह राज अरु लक्ष्मी जानौ जामै सार न कोई॥ किनकी माता किसको पिता अरु किसको पुत्र बनाई। जाके कारन इतनो कीनो सो भ्राता मो नाहीं॥३॥ सबरे कुटुमको पाप कमावै नर्क अकेलो जाई । जब पावै पुनि नर्क बसेरो तहँ कोई साथी नाहीं ॥ ऐसो राज न मोकों चहियै पाऊं दुक्ख घनेरो। NNoverwhere १ इस कथाके छपाते समय हमको दो प्रतियां मिली थीं सो प्रयः छन्द तो इस कथामें सबही गड़ बड़ हैं परंतु वो सब जहां तक हमारी समझमे आए दोनो प्रतियोसे मिलान कर सम्हार दीने ये छंद उन दोनो ही प्रतियोंमे ठीक पाठ नहीं पाया सो हमा री समझमे आया तहां तक सम्हारा विशेष पाठकोंसे निबेदन है कि यदि शुद्ध प्रति | कहीं मिले तो उसकी सूचना हमे भी दीजिये गा ता कि दूसरी बार छपाने पर सम्हार दी जायगी। For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान ४० www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज करोंगो मुक्ति नगरको पाऊं सुक्ख अनेरो ॥ ४ ॥ तवहि भ्रातसों कैसें बालो भ्रात सुनो तुम सोई । जह लछिमी मोकों नहिं चहिये चिंत करौ मति कोई ॥ मै तो जाऊं अरनि मकारा तजहुं परिग्रह सारा || मोपर भ्राता कीजै छिमा अब रहौ निसंक कुमारा ॥ ५ ॥ इतनी कहि करि कुमरा जबही निज महलन मैं जाई । निज त्रियसों तब कैसें बोलो नारि सुनो मनलाई || तुम प्रसाद मै भोग सुकीने छमियो चूक हमारी । मैं तो जाउं अरनिके माही होउं महाव्रत धारी ॥ ६ ॥ तुम तौत्रिय व सुखसों रहियो चिंत करो मति कोई । इतनी सुनि करि नारी बोली सुनियों कंथ हमारी ॥ धन्य जनम अवतार तुम्हरो बाछी बात विचारी । For Private And Personal Use Only कथा ४० Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MAVAVAVAAVAJAVANIvoe तुमको भरता छोडि कहांअब कह जुरहो घर माहीं॥७॥ मैं हूँ चलि हौ संग तुम्हारे होउं अरजिका जाहीं। इतनी सुनिक कुमरा जवहीं चलो तहांते धाई ॥ निज भावजपै तबही पहुंचो ताहि कहै समझाई । धनि भावज तुम हमरी जानौ तो सम और न कोई॥८॥ तुमने मोपै बहु गुण कीने कहँलौ करहुं बड़ाई । जो तैने मेरे प्रान बचाए भावज सुनियों सोई ॥ तो मै श्री मुनिको पद धारौं मेरी शुभ गति होई । तो मै जाउं अरनिके माहीं होउं दिगंबर भारी॥६॥ तातै छिमा अब मोपर कीजै भावज सुनहु हमारी। इतनी सुनिकै भावज बोली धनि देवर तुम सोई॥ अाछी तुमने बात बिचारी तुम सम अवर न कोई । AUGAURABHAVAVAVAVAL For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान ४१ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जा पापीके संघ सु जानो मैं अब रहि हं नाहीं ॥ १० ॥ संघ चलौंगी देवर तुम्हरे होउं रजिका जाही । संघ त्रियारु भावजकों ले चलो तहांतें सोई ॥ पहुंचो जाय अरनिके माहीं तहां मुनीश्वर होई । तीन प्रदक्षन दै शिर नायो प्रभु मोहि दीक्षा दीजै ॥ ११ ॥ फेरि मुनी तब कैसें बोले धनि तोकौं अब सोई । मोपै जिन दीक्षा जाची तो सम और न कोई ॥ दीक्षा दीनी श्री मुनिवरने भयो दिगम्बर सोई । नगन दिगम्बर मुद्रा धारी केस लोंच तब कीनो ॥ १२ ॥ पंच महाव्रत जानै धारो तब चारित्र सु लीनो । भावज और त्रिया पुनि ताकी भई रजिका जाई ॥ पंच महाबत तिन व धारो दुद्धर तप जो कराहीं । For Private And Personal Use Only कथा ४१ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAAAAAAAAAAAABAvi धनि यह समझ सोबुद्धि जु जिनकी धनि यह धीरजधारी ॥१॥ इह तौ कथन अब रहो इहांई और सुनो मनलाई । द्रोन नगरके भूपतिने पुनि जे खबरें सुनिपाई ॥ मंत्री तुम्हारे दीक्षा धारी सुनिक विरकित होई।। धृग यह राज सो लछिमी जानौ जामै सार न कोई ॥१४॥ जेठे सुतकौं राज सु दीनो सबसों छिमा कराई । तब पटरानी सों नृप बोलो नारि सुनो मनलाई ॥ मै तौ जाउं अरनिके माहीं होउं मुनीश्वर सोई । मो पर छिमा अब सबही कीजौ चिंत करौ मति कोई॥१५॥ तब रानी सब कैसे बोलीं धनि भूपति सुखकारी। धनि धीरज अब तुम्हरोजानौ धनि यह बात बिचारी।। हमहूं चलिहैं संग तुम्हारे होय महाव्रत धारी। ABAVANAGAVAILASAVAAVA - For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा ४२ MAAVARANADAVARANAWARomwitA. इतनी सुनिकरि भूपति तबहीं धनि धनि बैन उचारी ॥१६॥ देश देशके राजनको अब ताने खबरि पठाई । जो कोई जन दीक्षा धारौ सो श्राबौ अब धाई ॥ बहुत नृपति हितकारी पाए संग भए अब सोई। लै रानी सब नरपति चालो ढील करीनहिं कोई ॥१७॥ चलत चलत पुनि कहलौ श्राए बाही अरनिके माहीं। बिनहीं मुनिपै दीक्षाधारी और सुनो मनलाई ॥ नगन मुनीश्वर होय दिगंवर केश लोंच तब कीनो। देसै भूपति संग जु ताके तिन चारित्र सु लीनो ॥१८॥ रानी बहत्तरि संग जु ताके भई अरजिका सोई । दुद्धर तप तहां सबही करते और सुनो सो होई ॥ राय जसोमति खबरि जु पाई भूप सुनो सुखकारी। For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AVAVANAGAMAVASAN थोरे दिननको मंत्री तुम्हारो गयो हतो तहँ सोई ॥१६॥ दोन नगरमे मंत्री भयो हो भूप सुनो तुम सोई । ताकी प्रीतिसों तहँके भूपति प्राय मुनीश्वर होई॥ तुम कह राय विराजे गरवसों क्यों अब चेतत नाहीं । जेठे सुतकों राज सु दीनो सबसों छिमा कराई ॥२०॥ तब रनिवासमें भूपति पहुचे कैसैं कहै समझाई । पटरानीसों तबहीं बोलो नारि सुनो मनलाई ॥ हमतौ अब जिनदीक्षा धारें चिंत करौ मन नाहीं। तब रानी मिल कैसे बोली सुनियों भूप हमारी ॥२१॥ हमहूं चलि हैं संग तुम्हारे तप धारै सुखकारी ॥ इतनी सुनिक भूपति जबहीं मनमें आनंद कीनो। और सनेही नृपति बुलाए ते आए परवीनो ॥२२॥ NAVANAVAASAVASANA AAAAA For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा सबरे संगको नरपति लै लै रनिवास जु भारी । बाही अरनिमें तबहीं पहुंचो मुनिपै दीक्षा धारी ॥ बासठि राजा संघ जु ताके भए मुनीश्वर सोई । रानी सप्त जो भई अरजिका तप करतीं तहँ सोई॥२३॥ इस विधिसों पुनि बावन राई भए मुनीश्वर सारी। दुद्धर तप पुनि तहँ अब करते सहत परीषह भारी॥ धनि उपदेश कुमरको जानो भयो सबै सुखकारी । छांडि जगति सुख मुनिपद धारोतिनपद धोक हमारी ॥२४॥ दोहा-इस विधिसों वा अरनिमै , भए मुनीश्वर सार । धनि उपदेश कुमारको , भयो सबै सुखकार ॥२५॥ ___ढार त्रिभुवनगुरु स्वामी जी। बज्रसेंनि महराजा जी धरम जिहाजा जी। AAAAAAAAAAAAAAVARANG For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - PAVANATOPAAAAAAAVA अति घोर तप करत तहां अब जानियों जी॥ पावस ऋतुमाहीजी तरुतल सु रहाई जी। अति घोर तब वर्षा सहत सु जानियो जी ॥ २६ ॥ शीतकालके माही जी नदितीर रहांई जी। कै तालकी पारिपै कर्मन नाशियो जी॥ ग्रीषम ऋतु माहीं जी परबतपै रहाई जी। जहँ भानुतर्फे अरु पर्वत जानियो जी ॥ २७ ॥ दैवीश परीषह जी जु सग जगदीशा जी। उपसर्ग सहैं धीर बीर सुखकारी हैं जी॥ अरि मित्र बरावर जी समभोब सु धारै जी। नहीं राग अरु दोष न काहूपै करावहीं जी ॥ २८ ॥ षट करुना पालैं जी सब दुखकौं टालें जी। wwwvOAVAVVVRAVASAN For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान AAMAVANAVABAVANAVAVAL भुवि सोधि सु चालें करना निधि पाल, जी॥ दुद्धर तप कीनो जी भयो तन तीनो जी। अति घोर तप करो सो जानियो जी ॥ २६ ॥ दै मासको जानौ जी उपवास सु ठानो जी। कारन आहार सो नगरमे प्राईया जी ॥ इक धनुष प्रमाना जी भुत्र सोधि महाना जी । नासा दृष्टि धारै पुनि चित न चलाबहिं जी ॥ ३० ॥ नगरीमै जानो जी अहारके कारन जी। दुठ भ्रातकी नजरि परे सो जानियो जी ॥ मनमें सु विचारै जी मम बैरी सु ाब जी। मेरी नारि अरजिका जाने कराइयो जी ॥ ३१ ॥ VASAGAR ४४ For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir VOCALAMA जाकौं पड़गाहों जी विषाहार जिमाऊं जी। इस भांति सु जाके प्रान हनाइये जी ॥ ३२ ॥ मुनिवर पड़गाहे जी जाके घर आए जी। मुनि पुन्य तनो फल अब सुनि लीजियो जी॥ इक सुर जहँ अायो जी सूकर बनि धायो जी। मुनिराजके ढिग तहँ ठाडो भयो श्रानिक जी ॥ ३३ ॥ अंतराय करायो जी मुनिवर जु फिरायो जी । फिरि जाय अब बनमे श्री मुनि पहुंचियो जी ॥ तब अवधि विचारी जी जह बैरी भारी जी। ताते पूरब बैर चुकाय अब दीजिये जी ॥ ३४ ॥ एकांतर जाई जी जिन ध्यान धराई जी। अति धीर तहँ ठाड़े अरनिके माहीं जी॥ ANASANASAVANAGAVAVASAVASAPAN ALAMAVACAVALAN For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कथा ABOU. जब दुष्ट बिचारी जी ले खड़ग सु भारी जी। ताको अब जाय सो तौ अब शिरमें छेदि हौं जी ॥ ३५ ॥ लै खड़ग सु चालौ जी पापी अति भारी जी। मुनिपै अब जाय खड़ग सु चलाइयो जी॥ फिरि सुर जहँ आयो जी तसु कर सु बँधायो जी। तहँ ठाड़ो अब इत उत चलि नहिं पाबहीं जी ॥ ३६ ।। चालि छंद। भूपतिने खबरि जु पाई । जसबल दीने दौराई ॥ | फिरि मुसके ताकी चढ़ाई। लै अाए नगरके माहीं ॥३॥ | फिरिक रासभ मगवायो । तापर असबार करायो॥ अरु मुखकारो जब कीनो । ताको दीरघ दंड सु दीनो ॥३८॥ फिरि सबरे नगर फिरायो । जाके आगे ढोल बजायो॥ JAGAVAGAVAAVACADAV For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ANUAGAR ग धृगः सबही उच्चारै । बालक मिलि कंकर मारें ॥३॥ | फिरि देशते दो कढ़वाई । धन लक्ष्मी सब लुटवाई ॥ भूपतिनै दुहाई फिराई । सोतो सब देशन माहीं ॥४॥ जाकों जो बैठन देहौ । ताकी भुसखाल भरैहौं ॥ इस विधिसों जानो सोई । ताकों तहँ दंड सु होई ॥४१॥ | अब रहै बननके माहीं। तहँ तो अब भृमन कराहीं॥ | मुनि घातक सोय कहाबै । काहू ठौर वैठ नहिं पावै ॥४२॥ जहँ जाय तहां दुख होई । कर कंकर मारत सोई॥ ऐसे भृमतो बन माहीं । छिन साता ताको नाहीं ॥४३॥ । तृष छुधा सहै अधिकारी । सो जानो बहु दुख भारी ॥ 1 परनाम रुद्र जो करिके । जाने छोड़े पान दुख भरिक ॥४४॥ फिरि छटमे नर्क जु माहीं । अवतार लयो सो ताहीं ॥ २०१८ VAAAGAVANAGAND BAvivaBAGAMANAVARAvi For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान ४६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्ताइस सागर जानो । ताकी तहँ आयु बखानो || ४५|| तहँके दुखकी अब सोई । कहिबे समरथ नहिं कोई || गनधर हू गम्य जु नाहीं । जानै सो केवल माहीं ॥४६॥ तातें नर नारि सुनीजै । बैर भाव कदापि न कीजै ॥ राखौ समता व सोई । तातैं बहुतै सुख होई ॥४७॥ दोहा - इस विधिसों व दुष्ट वह, परो जु नर्क मझार । और कथन आगे भविक सुनो सबै नरनारि ||४८ || " चौपाई छंद | अब तो बर्सेनि मुनिराय । दुद्धर तप कींनो अधिकाय ॥ अंत समाधि मरन सो ठान । शुद्ध भावतें त्यागो प्रान ॥ ४६ ॥ पहुंचे षोडस स्वर्ग मकार । भयो इंद्रपद ताकों सार ॥ बाइस सागर वायु प्रमान । सुंदर रूप सु गुनहिं निधान ||५०|| For Private And Personal Use Only कथा ૪૬ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तहँके सुख भोगे जाय । कवि कहिबे समरथ नहिं ताय ॥ ताकी त्रियने बहु तप कियो । त सन्यास मरन तब लियो ॥ ५१॥ शुभावन तजि प्रान सुसार। इंद्रनी ताकी सुखकार ॥ ताकी भावज है सुखकार । कीनो तप दुद्धर अधिकार ||५२|| सही परीषह ताने सार । तहँ उपसर्ग भए जु अपार ॥ तसन्यास मरन करि जबै । शुद्धभाव तजि प्रान सु तबै ॥५३॥ स्त्री लिंग छेदि सुखकार । ताही स्वर्ग लयो अवतार ॥ ताकी महिमा बरने कोय । इंद्रके ढिग प्रतिइंद्र ज होय ॥ ५४ ॥ अब तौ द्रोन नगरके राय । दुद्धर तप कीनो सुखदाय ॥ अंत समाधिमरन करि सार । द्वादश स्वर्ग लयो अवतार ||५५|| तहँके सुख भुंजे अब सोय । श्रागें और सुनो सो होय ॥ राय जसोमतिने तप करो । त सन्यास मरन तब धरो ॥५६॥ For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दाम कथा VALAVANATANDAVARATARNALANAVAR सो तौ अष्टम स्वर्ग मझार । भयो देव पद ताकौं सार॥ बहुत बात को कहै बढ़ाय । बहुत कहें तो कथा बढ़ि जाय॥५७।। जिन जिनने जैसो तप करो। तिन तिननै तैसो पद धरो॥ इस विधिसों सबही नर नारि ।लयो स्वर्ग पद तिन अवतार॥८॥ देखौ दान तनो फल सोय । ताको इंद्रासन पद होय ॥ ताते नर नारी सुन लीजै । नितप्रतिदानचतुर्विधि दीजै ॥५६॥ | दान समान अवर नहिं कोई । जासों अजर अमर पद होई॥ ताः भव्य जीव सुनि लीजै । वितमाफिकनितदानसुदीजै॥६०॥ लखि सुपात्रको दीजै दान । दुखित भुखितके पोषै प्रान॥ | एकहु पुरुष जु संग जिमावै । दुखी देखिकै पोष करावै ॥१॥ जो इतनीहूं सकति न होय । एकहि रोटी दीजै कोय ॥ जो इतनी हूं सकति न होय । एकहि ग्रास देउ भवि लोय ॥६२॥ AURAVARANAADARAVADAV For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुत बात को कहै बखान । वित माफक नित दीजै दान ॥ तातैं नर नारी खुन लीजै । दान बिनाभोजननहिं कीजै ॥ ६३॥ दानहितैं हरि हलपद पावै । दानहिंतें चकी गुन गावै ॥ दानहिंते अहमिंद्र कहावै । दानहिंतें शिव सुंदरि पावै ॥६४॥ बहुत बात को कहै बढ़ाय । दानहिंतें त्रिभुवनको राय ॥ तातैं नर नारी सुन लीजै । दान बिनाभोजननहिंकीजै ॥६५॥ चौपाई | पूरन दानकथा यह भूल चूक अक्षर जो मैं मतिहीन जु पढ़े सुनै जो अब मनलाय । जनम जनमकेपातिकजाय ॥ ६७ ॥ दुख दलिद सब जाय नशाय । जो यह कथा सुनै मनलाय ॥ भई । भारामल्ल प्रघट करि कही ॥ होय । पंडित शुद्ध करो तुम सोय ॥ ६६॥ अधिकार | छमियोंबुधिजनसवनरनारि ॥ For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दान ४८ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुत्र कलित्र बढ़े परिवार । जो यह कथा करै बिस्तार ॥ ६८ ॥ दोहा - दानदथा पूरन भई, पढ़ौ सुनौ नित सोय । दुख दरिद्र नाशै सबै, तुरत महाफल होय ॥ ६६ ॥ लघु धी तथां प्रमादसों, शब्द अर्थ की भूल । सुधी सुधारि पढ़ौ सदां ज्यों पाबौ भवकूल ॥ ७० ॥ " जैसी पुस्तक में लिखी, तैसी छापी सोय । शुद्ध अशुद्ध जुहाये कहूं, दोष न दीजौ मोय ॥ ७१ ॥ इति दानकथा समाप्त । - पुस्तकें मिलने का पता - बद्रीप्रसाद जैन पो० नीबकरोड़ी जि० फतेगढ़ | For Private And Personal Use Only का ४८ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir జ ఆట త ల తల ene RABAR-ORRORSRests श्रीसमोशरण पूजन विधान भाषा। है ऐसा कौन प्राणी जैन समाजमे होगा जो कि समोशरणके माहात्म्यसे अनभिज्ञ होगा। . अर्थात् सबही जैनी समोशरणमहिमासे परिचित हैं जिन तीर्थकरदेवने घातिया कर्मोंका नाशकर डाला है उन्हें केवलज्ञान प्राप्त होय है तब इन्द्रआज्ञासे कुबेर समोशरणकी रचना करै है तिसका वर्णन इस प्रकार है प्रथम कोटके चार द्वारनपर चार मानाथम्भ होय हैं जिनको देखकर मानी जनोंका मान जाता रहै है अर्थात् भगवानकी पुण्य प्रकृतिका ऐसार उदय है कि जिनके अतिसय कर नम्री भूत होय हैं और जब भीतर जायकर समवशरणस्थ विभूतिको देख हैं ततौ प्रणियोंके अनेक विकल्प दूरि भागि जाय है जैसे प्रभूके प्रभार मण्डल झलके है उसमें प्राणियोंके सात २ भव दिखाई परें हैं अर्थात् तीन जन्म पहिले के। . और एक वर्तमान तीन जन्म जो अगाडी होवेंगे ऐसी २ आश्चर्य कारी अनेक बातोंको देख * कर क्रोधही है स्वभाव जिनका जैसे मूसाको-देखनेसे विलावको, सर्पके देखनेसे मोरको, . ६ तथा हिरणको देखकर सिंहको होता है ऐसे २ जाति विरोधी जीव भी शांति स्वभावी होय । एक स्थानमै तिष्टें है और धर्मोपदेश सुनकर अपना २ कल्यान करें हैं इत्यादि समोशरण की महिमा कहां तक लिखी जाय कोई मन्द बुद्धी सागरको गागरिमे नहीं भर सक्ता है अब उसी समोशरणका पाठ भाषा लालजीतकृत छपाया है सो पाटकोंसे विनय करता हूं कि स्वयं पुस्तक मगाकर पढ़िये और संतुष्ट हूजिये । पना-बद्रीप्रसाद जैन, पो० नीबकरोड़ी (फतेगढ) REFERESeseg- P RES-RESERECERESESERESES PRESENEL KE తతites For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only