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कथा
ABOU.
जब दुष्ट बिचारी जी ले खड़ग सु भारी जी। ताको अब जाय सो तौ अब शिरमें छेदि हौं जी ॥ ३५ ॥ लै खड़ग सु चालौ जी पापी अति भारी जी। मुनिपै अब जाय खड़ग सु चलाइयो जी॥ फिरि सुर जहँ आयो जी तसु कर सु बँधायो जी। तहँ ठाड़ो अब इत उत चलि नहिं पाबहीं जी ॥ ३६ ।।
चालि छंद। भूपतिने खबरि जु पाई । जसबल दीने दौराई ॥ | फिरि मुसके ताकी चढ़ाई। लै अाए नगरके माहीं ॥३॥ | फिरिक रासभ मगवायो । तापर असबार करायो॥
अरु मुखकारो जब कीनो । ताको दीरघ दंड सु दीनो ॥३८॥ फिरि सबरे नगर फिरायो । जाके आगे ढोल बजायो॥
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