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दान
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तब भूप कहै मनमाहीं । कैसें जु बिचार कराहीं ॥ जह न्यायवंत अधिकारो । जातैं राज चलै सु हमारो ॥ ६ ॥ तुरतहिं गजराज मगायो । कुमरा असवार करायो ॥ कानन कुंडल पहिराए । हातन मैं कड़ा डरबा ॥ १० ॥ गल में गजमोतिन माला । पहिराए साल दुसाला ॥ मंत्रीपद ताहि दयो है । सबमें शिरमौर भयो है ॥। ११ ॥ सब राज काजको भार | सौंपो ताक भुपाल ॥ बहुत बात को कहै बढ़ाई | दयो बांटि राज चौथाई ॥ १२ ॥ देखो दान तनो फल सोई । कैसो जो ततछन होई ॥ तातें नरनारि सुनीजै । नित दान चतुर्विधि दीजै ॥ १३ ॥ जह दान समान न कोई । जासों जन्मसुफल होई ॥ सुरगादिकके सुख पावै । अनुक्रम शिवपुरको जावै ॥ १४ ॥
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कथा
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