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दान
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सब सोभा जु बरनि करि कहीं। बढ़े कथा कछु अंत न लहौं ||५८ ||
चलत चलत जब कछु दिन गए । महापुरी में पहुँचत भए । डेरा बागन दीने जाय । तहां निसान रहे फहराय ॥ ५६ ॥ नेगचार तहँ वह विधि भए । थरु षटरसके भोजन दए || एक पहर निशि बीती जबै । सुभ बारौठो कीनो तबै ॥ ६०॥ हय गय रथ बांहन सजवाय । चउरेंग सैन सजी सुखदाय ॥ अरबी तरी तहँ बजवाय | नौबतिखानो दयो झराय ||६१ || तुरही सुरही अरु करनाल । तूर मृदंग झांझ धुनि ताल ॥ आतसबाजी छूटे सोय । बाजनके कुहराम जु होय || ६२ || इस विधिस दरवाजें जाय । बरकों देखि सेठि सुखपाय ॥ सोभो दीनो अधिक अपार । कौन कहै ताको विस्तार ||६३ ||
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कथा