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विप्र विदा कीनो पुनि जबै । दयो अतुल धन ताक तबै ॥ चलत भयो तहँ व सोय । दिन रुरातिगिने नहिंकोय ॥ ५४ ॥ चलत चलत जब कुछ दिन गए । महापुरीमें पहुँचत भए । सब वृत्तान्त कहो समझाय । सुनिकरि सेठिपरमसुख पाय ।। ५५|| सोरठा । मुहूरत दिन सुधवाय, सुभ लगुनै पठवाइयो । और सुनो मनलाय, जैसो कथन जुयाइयो || ५६ ॥ चौपाई |
टीका दिन पहुँचो जब प्राय । तब तहां सजी बरात बनाय ॥ हयगय रथ बाहन करि सार । चउरंग दल साजे सवार ||५७|| अरवी सुतरी अरु करताल । तूर मृदंग भेरि कंसाल ॥
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