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दान
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इतनी सुनिकें भूपति जबै । बज्रसैन बुलवाए तवै ॥ तबहीं भूपति कैसें कही । लेउ पितापद तुम व सही || तब कुमार बोलो करजोरि । हो महराज सुनो सु बहोरि ॥ जेठो भ्राता तात समान । ता श्रागें मोहि जोग न श्रान ॥८॥ विनहींकों दीजै भूपाल । हुकम करौं तुमरो दरहाल ॥ इतनी सुनिकें भूपति जबै | अधिक प्रसन्न भए सो तबै ॥६०॥ तुरत लयो महसैन बुलाय । सो भूपति दीनो पहिराय ॥ छपनकोटि जाके दीनार । ताको स्वामी करो ततकाल ॥ ६१ ॥ दयो सेठिपद ताकों सोय । यागें और सुनो जो होय ॥ व जानौ बज्रसेनि कुमार । नित जावै नृपके दरबार ||६|| साधै हुकुम नृपतिको सोय । भूपति अधिकप्रसन्न सु होय ॥
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कथा
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