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BANAVARA
AMARAVALAMAAAAAAAAADAV
अायो मुझ भ्राता जोई। इन्ह देहु तातपद सोई॥ इतनी सुनिके तब राई । महसेनि दयो पहिराई ॥२॥ पुनि दयो है सोठिपद ताकों । फिरिकै भूपतिने जाकों ॥ अरु छपन कोटि दीनारा । फिरि सौंपि दए तिन सारा ॥६॥ फिरि छप्पन ध्वजा गढ़ाई । देशनमें कोठी चलाई ॥ इस विधिसों भ्रात बुलायो । ताको सब दुक्ख नशायो ॥६४|| जे धन्य पुरुष जगमाहीं । औगुन पर गुनहीं कराहीं॥ तिनहींको जीवन सार । तिनहीको धन्य अवतार ॥६५॥ दोहा-इस विधिसों जो कुमरने, भ्रात लयो बुलवाय ॥ और कथन अागें भविक, सुनो सबै मनलाय ॥६॥
चौपाई। रहत भयो महसेन कुमार । मनमें कैसे करत विचार ॥
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AVASAVAR
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