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कथा
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दयावत पुरुष बह जानौ । अरु है सुगुननको निधानो। ताते ऐसो काज न होई । वह तो कुल दीपक जोई ॥८६॥ अरु तुम कह लायक सोई । ताको करौ उपाय जु कोई॥ तातै बालम सुनि लीजै । मन चिंता कछु नहिं कीजै ॥७॥ ऐसें पतिको समझायो । धीरज तब ताहि बंधायो ॥ तब दोनो चले नरनारी । पहुंचे निज नगर मझारी॥८॥ | गौडै पहुँचे तब जाई । कुमराने खबरि जु पाई॥ अंबर आभूषण जानो । भेजे तिनको सु बखानौ ॥६॥ जब निजघर पहुंचे जाई । तब भयो है मिलाप बनाई॥ सनमान कियो सुखकारी । दिये षटरस भोजन भारी ॥१०॥ फिर चाले दोनो कुमारा । पहुंचे नृप सभा मझारा ॥ बज्रसेनि कहैं तब कैसें । महराज सुनो तुम ऐसें ॥१॥
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