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कथा
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ताही नगर इक सेठि सुजान । मकरध्वज तसुनाम बखान ॥६॥ पूरव पुन्य उदै सुखकार । लछिमीको ताके नहिं पार ॥ सूर्यकला ताकें वर नारि । मानो सूरजकी उनहारि ॥२॥ तासम रूप अवर नहिं कोय । मानो देववधू जह होय ॥ शील धुरंधर गुनकी खानि । पतीव्रता बह नारि बखानि॥६॥ ताको सोर भयो जग माहिं । तासम रूपवती कोऊ नाहिं॥ इक दिन ऐसो कारन भयो । सेठि तबै परदेशन गयो ॥६४|| कारज बनिज गयो गुनवान । अागें और सुनो व्याख्यान॥ इक बिद्याधर ठगई करी । सेठिरूप कीनो तिस घरी ॥६५॥ नारि छलनके कारन सोय । पोदनपुरकों रमतो होय ॥ ताके महलन पहुंचो जाय । तासों कैसें तब बतलाय ॥६॥ में आयो तेरो भरतार । क्यों नहिं श्रादर करै सु नारि॥
VAVAVANAMAVAVALAMANAVARIA
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