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यह तौ कथा रही इस कौं सलदेश बसे सुभ सो नगरी महिमा को
सनमान करो धिको बनाय । षटरस भोजन दीने जिमाय ॥ अरु द्वादश नगरी दई राय । न्यारे जु महल दीने कराय || ५६ || देखो मुनि दान तनो प्रभाय । तबकुमर दुक्ख सबही पलाय ॥ इस भांति कुमर जानो जु सोर । नित भोग विलाश करें अपार ॥५७॥ या नर नारि जु सुनो कान । वित माफिक दीजै सदा दान ॥ इस भांति कुमर पुरदोन माहिं । सुखसों निवसे कछु दुक्ख नाहिं | ५८ || दोहा - इसविधिसों पुनि कुमर तब, दोन नगरमें सार । भूप करें सनमान नित, भोगे सुक्ख अपार ॥५६॥ चौपाई |
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ठांय । श्रागें और सुनो मनलाय ॥ सार । पोदनपुर नगरी सुखकार ॥ ६० ॥ कहै । स्वर्गपुरी मानौ वह लहै ॥
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