________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
MAVAVAVAAVAJAVANIvoe
तुमको भरता छोडि कहांअब कह जुरहो घर माहीं॥७॥ मैं हूँ चलि हौ संग तुम्हारे होउं अरजिका जाहीं। इतनी सुनिक कुमरा जवहीं चलो तहांते धाई ॥ निज भावजपै तबही पहुंचो ताहि कहै समझाई । धनि भावज तुम हमरी जानौ तो सम और न कोई॥८॥ तुमने मोपै बहु गुण कीने कहँलौ करहुं बड़ाई । जो तैने मेरे प्रान बचाए भावज सुनियों सोई ॥ तो मै श्री मुनिको पद धारौं मेरी शुभ गति होई । तो मै जाउं अरनिके माहीं होउं दिगंबर भारी॥६॥ तातै छिमा अब मोपर कीजै भावज सुनहु हमारी। इतनी सुनिकै भावज बोली धनि देवर तुम सोई॥ अाछी तुमने बात बिचारी तुम सम अवर न कोई ।
AUGAURABHAVAVAVAVAL
For Private And Personal Use Only