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दान
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राज करोंगो मुक्ति नगरको पाऊं सुक्ख अनेरो ॥ ४ ॥ तवहि भ्रातसों कैसें बालो भ्रात सुनो तुम सोई । जह लछिमी मोकों नहिं चहिये चिंत करौ मति कोई ॥ मै तो जाऊं अरनि मकारा तजहुं परिग्रह सारा || मोपर भ्राता कीजै छिमा अब रहौ निसंक कुमारा ॥ ५ ॥ इतनी कहि करि कुमरा जबही निज महलन मैं जाई । निज त्रियसों तब कैसें बोलो नारि सुनो मनलाई || तुम प्रसाद मै भोग सुकीने छमियो चूक हमारी । मैं तो जाउं अरनिके माही होउं महाव्रत धारी ॥ ६ ॥ तुम तौत्रिय व सुखसों रहियो चिंत करो मति कोई । इतनी सुनि करि नारी बोली सुनियों कंथ हमारी ॥ धन्य जनम अवतार तुम्हरो बाछी बात विचारी ।
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कथा
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