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चौपाई |
तुरतहिं पंडित लयो बुलाय | घरी मुहूरत दिन सुधवाय ॥ मंडफ पुनि तब दयो बाय । व्याह र ताको सुखदाय ||४४ || इत उत द्रव्य जुदै करि सोय । व्याह करो जेठे सुत कोय ॥ बाजे बजैं तहाँ सुखकार । जुवती गावैं मंगल चार ॥४५॥ भामरि परी तहाँ अब सोय । वह विधि आनँद मंगल होय || इस विघिस महसैन कुमार । सो परनो जानौ सुखकार ||४६|| दोहा - इस विधिसों जेठो कुमर, व्याहि लयो सुखकार । अब लघु सुतके व्याहको, बरनन सुन नरनारि ॥४७॥ चौपाई | मरहट देश बसै सुभजान । महापुरी तहां नगर बखान ॥
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