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दान
कथा
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३) दोहा-पंच परम गुरु सुमिरिक, सरस्वतिको शिरनाय । दान कथा बरनन करौं , सुनौ भविक चितलाय ॥२॥
चौपाई। श्री गौतमके सुमिरों पाय । दान कथा जु कहों मन लाय॥ दान बड़ो संसार मझार । दान करौ जु सबै नर नारि ॥३॥ | दान विना धृग जीवन होय । तातै दान करौ सब कोय ॥
धनकी सोभा जानौ दान । दान विना नर पसू समान ॥ दानहितें धन संपति होय । दुख दरिद्र नाशै सब कोय॥ माफिक सक्ति दान नित देय। इस भव यश पर भव सुख लेय॥५॥ दान कहो जु चारि परकार । भिन्न भिन्न सुनियै नरनारि ॥ प्रथमहिं दीजै दान अहार । जासों लक्षि भरे भंडार ॥६॥
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