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दान
कथा
ताके महल मझार देउं सु अगिन लगाई । तासों जरै ततकाल दाउ लगो मेरो आई ।। १ ॥ तहँतै उठो ततकाल तासु महलपे जाई । दरवाजेते धाय तानै अगिनि लगाई। फाटिक जरे ततकाल पैठी महल जु सोई । धूमके उठे पहार अगिन प्रवेश जु होई ॥ २ ॥ यहतौ कथन इसथान रहो है सुनो नरनारी। अब सुरलोक मझार सुनियो चित्त विचारी॥ प्रथम स्वर्गके माहिं हरि बैठो दरबारा । अवधिज्ञान करि सोय इंद्र करै सु विचारा ॥३॥ देवनसों सुरराय कैसे कहें समझाई । वह बज्रसैन कुमार दान दयो मुनिराई ॥
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