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तबहीं भूपति कैसें कही ।चाहौ सो कीजौ अब सही ॥६६॥ | तोहि करो मंत्री में सही । कहि दीनी सो भूपति यही॥ इतनी सुनि करिकै सु कुमार। मनमें ऑनद बढ़ो अपार ॥७॥ फिरि आयो निज मंदिरमाहिं। मनमें कैसें कहै बनाय ।।। | अबतौ मौसैं नृप कहि दई। ताके मन कछु चिंता नहीं ॥८॥ | इस विधिसौं जानौ अब सोय । रहै निसंक महा सुख होय ॥
बहुत करो ताको सु उपाय । श्रागें और सुनो मनलाय ॥६६॥ | एक दिवस बज्रसैन कुमार। सोवत तो निज महल मझार॥ फाटक बंद दए करवाय । श्रागें और सुनो मनलाय ॥२००||
_ ढार अहोजगति गुरुकी । श्राधी रैनके माहि जागो दुष्ट गमार । सौतौ अब मनमाहिं कैसे करत विचार ॥
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