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दान
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चौपाई |
जेठो है महर्सेनि कुमार । बज्रर्सेनि लघु जानौ सार || बसु सु वर्ष ने जब भए । मुनिके पास पढ़नकों गए ||२३|| जेठो सठ बुद्धी अब जान । मूरख है सो दुखकी खान ॥ बरसीं बीतीं अब सोय । अंकु एक आवै नहिं कोय ||२४|| लघुतौ जानौ चतुर प्रवीन | सो जानौ प्रति गुन करि लीन ॥ एकु जु अंक पढ़ावै मुनी । तातै कुमर पढ़ें चौगुनी ||२५|| सो ट महिना भीतर सार । बिद्या सर्व पढ़ी अधिकार ॥ फिर दोनों निज धरकों गए । तात पास सो पहुंचत भए ||२६|| दोनो सुतन बचन सुनि सोय । वह सठ बह जु चतुर अब होय ॥ जेठो देखि भयो जु उदास | लहुरो देखें परम हुलास ||२७||
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कथा
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