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न्याय नीतिसों नित पग धरै । भूलि अनीति न कबहूं करें ॥ ताही नगर इक सेठ सुजान । नाम महीधर कहो बखान ॥ १८ ॥ पूरव पुन्य उदय अब सोय । ताके घर लक्षिमी बहु होय ॥ छप्पन धुजा लहकें जहँसार । जाकें छपन कोटि दीनार ॥ १६ ॥ हेमवती जाके घर नारि । शील वंत गुनकी अधिकार ॥ नित प्रति पूजा दान सु करै । जिनवर नाम सदा उच्चरै ||२०|| ताकें युगल पुत्र सो भए । दुख सुख रूप तहाँ परिनए ॥ जेठो है सो मतिको हीन । लघुतौ जानौ चतुर प्रवीन ||२१|| दोहा । जेठो मति हेठो कुटिल, लघु सु सरल परिनाम ॥ उपजे एकहि कुखमें, पाप पुन्य परमान ॥ २२ ॥
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