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दान
1 मेरो जोर चलै अब नाहिं । मुझ आगें यह घात कराहिं ॥१२॥ | सकति सु माफक दंड सु लेय । प्रोषादिक उपवाश करेय ।।
इस विधि दान चतुर परकार । भाँषो श्रीमुनि मुख सार॥१३॥ । तातै दान करौ सब कोय । दानहिं सार जगतमें होय ॥
दान दयो बज्रसेंनि कुमार । ताको कथन सुनो नर नारि॥१४॥ जंबू दीप दीपनमें सार । भरत क्षेत्र सोभै अधिकार ॥ मरहट देश तहाँ अब जान । धारापुर तहँ नगर बखान ॥१५॥
सो नगरी महिमा को कहै । अमर पुरी मानो बह लहै। ही सब सोभाजु बरनि करि कहौं । बट्टै कथा कछु अंत न लहौं ॥१६॥ | तिस नगरीको भूपति जान । यशो भद्र तसु नाम बखान ॥ परजा पालै अति सुखकार । दीन जननको पालन हार ॥१७॥
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