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दोहा । इस विधिसौं दोनो कुमर, रहत भये तहँ सोय ।। और कथन आगे अबै, जो कछु जैसो होय ॥२८॥
चौपाई। M देश देशमें जौहरी जान । बगै तहाँ बहु धनकी खान ॥
तिनके पुत्री सुंदर सार । जानो तहां गुनन अधिकार ॥२६॥ तिनकी सगाईं श्रा सार । लहुरे कुमरको अधिक सुसार। जेठे कुमरको जानो सोय । करै कबूल सगाई न कोय ॥३०॥
गीता छंद । इतनी जु सुनिकरि सेठि जवही मनमैं करत विचार जू। जेठेके आगे लघुकों परनो जीवनकों धरकर जू ॥
MAAVAVAVANVARVASAVAAVA
PURNAVARANAWAVAVAVAVAAVVASANA
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