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चौपाई। जेठो मनमें करत विचार । देखौ तात की दुविधा सार॥ जनम दरिद्रीकै अब सोय । ताकै मोकों परनो होय ॥७॥ कोटीध्वज जौहरीकै सार । सो परनो लहुरो जु कुमार ॥ य गय रथ दीने सजवाय । बहुत द्रव्य तहँ खर्च कराय ॥७६|| ऐसैं मनहिं विचारै सोय । मानै दोष लघुसों बहु जोय ॥ लघुतौ मानै बासों प्रीति । वह राखै वासों विपरीति ॥७॥ दोहा-इस विधिसों दोनो कुमर , रहत भए अब सोय । निज निज टेव न छोड़ई , जैसी जाकी होय ॥ ७८ ।।
गीता छन्द । तिस काल लब्धि सु प्राय पहुँचो सो सुनो नरनारि जू ।
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VAAVAWANI
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