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दान
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जोगीरासा ।
इतनी सुनि करि भूपति जबहीं मनमें विरक्ति होई ॥ धृग लछिमी यह राजसु जानौ जामें सार न कोई || माता मोहि पाप जु लागे छाडें अपजस होई ॥ जहतौ राज नरकगति देई जामें फेर न कोई ॥ ८४ ॥ किसको पुत्र पिता किसको किसके बाँधव भाई ॥ सबरे कुटुमकों पाप कमाबै नर्क केली जाई ॥ ऐसो राज न मोकों चहियें भृमाँ चतुर्गति माहीं ॥ राज करोंगो मुकति नगरको भूपतिके चित आई ॥ ८५ ॥ जेठे सुतको राज सु दीनो नृपने नीति विचारी ॥ सब जीवनस मागि क्षमा अब पहुंचो अरनि मकारी ॥ श्री सौधर्म मुनीश्वर के बजाय चरन शिर नाई ||
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कथा
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