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कथा
सबरे संगको नरपति लै लै रनिवास जु भारी । बाही अरनिमें तबहीं पहुंचो मुनिपै दीक्षा धारी ॥ बासठि राजा संघ जु ताके भए मुनीश्वर सोई । रानी सप्त जो भई अरजिका तप करतीं तहँ सोई॥२३॥ इस विधिसों पुनि बावन राई भए मुनीश्वर सारी। दुद्धर तप पुनि तहँ अब करते सहत परीषह भारी॥ धनि उपदेश कुमरको जानो भयो सबै सुखकारी ।
छांडि जगति सुख मुनिपद धारोतिनपद धोक हमारी ॥२४॥ दोहा-इस विधिसों वा अरनिमै , भए मुनीश्वर सार ।
धनि उपदेश कुमारको , भयो सबै सुखकार ॥२५॥
___ढार त्रिभुवनगुरु स्वामी जी। बज्रसेंनि महराजा जी धरम जिहाजा जी।
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