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कथा
तब बोली कैसे बरनारि । मेरे बचन सुनो भरतार ॥ अब तौ चलौ देशको कंत । ढील करौ मति चलौ तुरंत ॥५२॥ इतनी सुनिकै तबै कुमार । चलनेको तब करो करार ॥ भूपतिके दरबार सु जाय । कहत भयो नृपकों शिरनाय ॥५३॥ जो देवौ अब अाज्ञा मोय । तौ मैं जाउं देशकों सोय ॥ मोहि लेन अाए भूपाल । तातै दीजै अाज्ञा हाल ॥५४॥ तबही भूपति कैसे कही । कुमर बात तुम सुनियो सही॥ अब जुकही सुकही तुम सोय । फिरि ऐसी कहनो नहिं कोय॥५५॥ तब बोलो कैसें जु कुमार । हो भूपति मेरे हितकार ॥ एक वार तो जाऊं सोय । फिरि आऊं तहँ रहौं न कोय॥५६॥ तब भूपति नै जानी सही । अब कुमार रहनेको नहीं॥ जो हठ करि राखौं अब सोय । निह. भंग प्रीतिमैं होय ॥५॥
VACAN
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