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कथा
| तब पीछतें आपुन कुमार । भोजन सु करो तानें जु सार ॥ फिरि नारि सु भोजन करोजान।सोधन्य भाग निजको सु मानि॥६॥ दोहा-इस विधिसों ऋषिराजकौं, दीनो शुद्ध प्रहार ॥ धन्य भाग ताको सु अव , धनि जाको अवतार ॥६५॥
चौपाई। । भ्राताने जो करो उपाय । ताकी यदि करै कछु नाहिं ॥ हा अब सुखसौं तहँ रहै कुमार । अागे और सुनौ बिस्तार ॥६६॥
दिन अथयो निशि जवहीं भई। फिरि तब दुष्ट नारि सों कही॥ । कैसो मारो भ्राता सोय । जीवत फिरै मरो नहिं कोय॥६॥ । तबै नारि फिरि कैसे कही । हो भरतार सुनो तुम सही॥ काहं जनाइ दयो सो हाल । भोजन छांडि गयो ततकाल ॥६॥ जो मुझ झूठी जानो कंत । विषके भोजन देख तुरंत ॥
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