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चौपाई। है। नृप महलनतें चलो कुमार । सो आयो निज ग्रेह मझार॥
सूने घर देखे तहँ जाय । बसैं काग तिनमे तहँ श्राय ॥६॥ भावज भ्राता देखे नाहिं । अधिक करी चिंता मनमाहि।। कही नृपति सों तानै जाय । हो महराज सुनो मनलाय ॥७॥ सूने मंदिर हमरे भए । भावज भ्रात कहां मो गए। तबहीं भूपति ऐसें कही । कुमार बात तुम सुनियों सही ॥७॥ तेरो भ्राता पापी होय । काढ़ि जु दयो देश” सोय ॥ छपन कोटि तुम्हरे दीनार । सो लेबौ राखो भंडार ॥७२॥ तब कुमार बोलो करजोरि । भो महराज सुनो सु बहोरि॥ तात समान जु मेरो भ्रात । सो तुमने काढ़ो अब दात ॥७३॥ | सो तो फिरै बननमें धाय । हम इहँ बैठे राज कराय॥
SAAMANAVARANAMAAVA
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