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कथा
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अष्टम दिन लागो जबै भूप सुनी यह बात। करना बह मनमें करो कैसे तब पछितात ॥दान॥२७॥ ऐसो कोउ न नगरमें श्राहार देय शुध भाय । नितप्रति मुनि फिरि जात हैं श्रावत है अंतराय ॥दान॥२८॥ अबतौ अाजुमैं देंउ गो मुनिबरकौं पड़गाय । दोष छयालिस टारिक आहार देउं शुधभाय ।।दान||२६॥ इतनी कहिकै भूपनै डौंडी नगर दिवाय । हिंसक जिय है नगरमें भूपदए कढ़वाय ॥दान०॥३०॥ द्वारा पेखन नृप करो मनबचतन करि राय । पुन्य बिना मुनि ना मिले और सुनो मनलाय ॥दान०॥३१॥ बनतें मुनिवर डगरियो करना निधि प्रतिपाल। ईर्यापथ सोधत चले श्रीगुरु दीन दयाल ॥दान०॥३२॥
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