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दान
३३
कथा
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तवहि विरघफिरि कैसे कही। हो महराज सुनो तुम सही ॥ जो प्रावै बज्रसेन कुमार । तौ तुम राज चले सुखकार ॥३२॥ तबहीं भूपति कैसे कही । बहतौ अगिन जलायो सही॥ | सो कहतै आबै अब सोय । मै नीके करि बूझौं तोय ॥३३॥ | तबै जौहरी कैसे कही । हो महराज सुनो तुम सही ॥ पुन्यवंत नरकों अब सोय । संकट दुख व्यापै नहिं कोय ॥३४॥
सवैया तेईसा। पुन्य थकी महराज सुनो अब पावकः निह. जल होई। पुन्य थकी श्रीपाल सुनोअब सागर पार भयो तरि सोई॥ पुन्य थकी महराज सुनो अरु गजकों ग्राह नहीं भय होई। पुन्य थकी महराज सुनो अहिके मुखते पुनि अमृत होई॥३५॥ पुन्य थकी महराज सुनो बनतै नगरी पुनि होय निदानो।
VUVAGAVARVASNAPOONA
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