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दान
कथा
३४
ACCCCAWAGAAVAHARArAVA
सो जस फैलो सब जग माहिं । तब हमने जानी जहराय ।। | इतनी सुनि करि भूपति जबै। मनमें विचार करै सो तबै ॥४१॥
जो काहूकों पठऊ सोय । तो वह श्रावन को नहिं कोय॥ ताते मैहीं ल्यावन जाय ।सो कुमारकों लाउं बुलाय ॥४२॥ | तुरतहिं सैन लई सजवाय । हय गय रथ वाहन सु बनाय॥ चलत भयो तहँ तें अब सोय । दिनअरुरातिगिनेनहिंकोय ॥४॥ चलत चलतजबकछु दिन गए। द्रोन नगरमे पहुंचत भए । ऐसी खबरि कुमर तब पाय । श्रावत लेन तुम्हे सो राय ॥४॥ इतनी सुनि कुमारने कही। मुख नहिं देखों नृपको सही॥ लौटि जाय निज घरकों सोय । जियतमिलापनहमसें होय ॥१५॥
अडिल्ल । इतनी सुनिके नारि कहै बचसार हो। ऐसी कहनी जोग नहीं भरतार हो
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