Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

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Page 88
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AVAVANAGAMAVASAN थोरे दिननको मंत्री तुम्हारो गयो हतो तहँ सोई ॥१६॥ दोन नगरमे मंत्री भयो हो भूप सुनो तुम सोई । ताकी प्रीतिसों तहँके भूपति प्राय मुनीश्वर होई॥ तुम कह राय विराजे गरवसों क्यों अब चेतत नाहीं । जेठे सुतकों राज सु दीनो सबसों छिमा कराई ॥२०॥ तब रनिवासमें भूपति पहुचे कैसैं कहै समझाई । पटरानीसों तबहीं बोलो नारि सुनो मनलाई ॥ हमतौ अब जिनदीक्षा धारें चिंत करौ मन नाहीं। तब रानी मिल कैसे बोली सुनियों भूप हमारी ॥२१॥ हमहूं चलि हैं संग तुम्हारे तप धारै सुखकारी ॥ इतनी सुनिक भूपति जबहीं मनमें आनंद कीनो। और सनेही नृपति बुलाए ते आए परवीनो ॥२२॥ NAVANAVAASAVASANA AAAAA For Private And Personal Use Only

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