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VOCALAMA
जाकौं पड़गाहों जी विषाहार जिमाऊं जी। इस भांति सु जाके प्रान हनाइये जी ॥ ३२ ॥ मुनिवर पड़गाहे जी जाके घर आए जी। मुनि पुन्य तनो फल अब सुनि लीजियो जी॥ इक सुर जहँ अायो जी सूकर बनि धायो जी। मुनिराजके ढिग तहँ ठाडो भयो श्रानिक जी ॥ ३३ ॥ अंतराय करायो जी मुनिवर जु फिरायो जी । फिरि जाय अब बनमे श्री मुनि पहुंचियो जी ॥ तब अवधि विचारी जी जह बैरी भारी जी। ताते पूरब बैर चुकाय अब दीजिये जी ॥ ३४ ॥ एकांतर जाई जी जिन ध्यान धराई जी। अति धीर तहँ ठाड़े अरनिके माहीं जी॥
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ALAMAVACAVALAN
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