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दान
AAMAVANAVABAVANAVAVAL
भुवि सोधि सु चालें करना निधि पाल, जी॥ दुद्धर तप कीनो जी भयो तन तीनो जी। अति घोर तप करो सो जानियो जी ॥ २६ ॥ दै मासको जानौ जी उपवास सु ठानो जी। कारन आहार सो नगरमे प्राईया जी ॥ इक धनुष प्रमाना जी भुत्र सोधि महाना जी । नासा दृष्टि धारै पुनि चित न चलाबहिं जी ॥ ३० ॥ नगरीमै जानो जी अहारके कारन जी। दुठ भ्रातकी नजरि परे सो जानियो जी ॥ मनमें सु विचारै जी मम बैरी सु ाब जी। मेरी नारि अरजिका जाने कराइयो जी ॥ ३१ ॥
VASAGAR
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