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PAVANATOPAAAAAAAVA
अति घोर तप करत तहां अब जानियों जी॥ पावस ऋतुमाहीजी तरुतल सु रहाई जी। अति घोर तब वर्षा सहत सु जानियो जी ॥ २६ ॥ शीतकालके माही जी नदितीर रहांई जी। कै तालकी पारिपै कर्मन नाशियो जी॥ ग्रीषम ऋतु माहीं जी परबतपै रहाई जी। जहँ भानुतर्फे अरु पर्वत जानियो जी ॥ २७ ॥ दैवीश परीषह जी जु सग जगदीशा जी। उपसर्ग सहैं धीर बीर सुखकारी हैं जी॥ अरि मित्र बरावर जी समभोब सु धारै जी। नहीं राग अरु दोष न काहूपै करावहीं जी ॥ २८ ॥ षट करुना पालैं जी सब दुखकौं टालें जी।
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