Book Title: Dankatha arthat Vajrasen Charitra
Author(s): Bharamal Sanghai
Publisher: Jain Bharti Bhavan Kashi

View full book text
Previous | Next

Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दान कथा ४२ MAAVARANADAVARANAWARomwitA. इतनी सुनिकरि भूपति तबहीं धनि धनि बैन उचारी ॥१६॥ देश देशके राजनको अब ताने खबरि पठाई । जो कोई जन दीक्षा धारौ सो श्राबौ अब धाई ॥ बहुत नृपति हितकारी पाए संग भए अब सोई। लै रानी सब नरपति चालो ढील करीनहिं कोई ॥१७॥ चलत चलत पुनि कहलौ श्राए बाही अरनिके माहीं। बिनहीं मुनिपै दीक्षाधारी और सुनो मनलाई ॥ नगन मुनीश्वर होय दिगंवर केश लोंच तब कीनो। देसै भूपति संग जु ताके तिन चारित्र सु लीनो ॥१८॥ रानी बहत्तरि संग जु ताके भई अरजिका सोई । दुद्धर तप तहां सबही करते और सुनो सो होई ॥ राय जसोमति खबरि जु पाई भूप सुनो सुखकारी। For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101